SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 118 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन इसी प्रकार कुछ और उल्लेखनीय उदाहरण दिये जाते हैं(1) आधारमिव धैर्यस्य, हृवस्यमिव सौहृदय, स्वतत्वमिव सत्वस्य, परिपाकमिव पौरूषस्य, जयस्तम्भमिवावष्टम्भस्य, दृष्टान्तमिव कष्टं सहानाम् पृ. 231 (2) सुभटशस्त्र पातरणितेन प्रणम्यमानमिव, भूमिनिक्षिप्तमूर्धभिः कबन्धे रच्यमानमिव, उच्छलकुम्भमुक्ताफलाभिः करिघटामिरमिषिच्यमानमिव, मुक्तासृग्वृष्टिमि - - पृ० 90 (3) विरचितालकेव मखानलधूमकोटिभिः, स्पष्टितांजन तिलक बिन्दुरिव बालोद्यानं:, आविष्कृत विलासेसहासेव दन्तवलभीमिः आगृहीतदर्पणेव सरौभि: पृ० 11 रूपक भेदयुक्त उपमान तथा उपमेय का सादृश्यातिशय के कारण जो अभेद वर्णन है, वह रूपक अलंकार कहलाता है । 1 नीचे तिलकमंजरी से रूपक के तीन उदाहरण दिये जाते हैं— (1) “मदिरावती रागरूपी नट की रंगशाला, रूप की सोने की लेखनी, विभ्रम भ्रमरों की कमलिनी, क्रीडारूप कलहसों का शरतकालागमन, कामदेव रूपी महावातिक की वशीकरण विद्या थी । "2 यहां राग तथा नट, रूप तथा स्वर्ण, विभ्रम तथा भ्रमर, केलि तथा कलहंस में अभेद स्थापित किया गया है, अतः रूपक अलंकार है । (2) सांगरूपक एक का सुन्दर उदाहरण समुद्र के वर्णन में मिलता है'वह समुद्र, हंसनूपुर के शब्दों को बन्दकर तीव्रता के कारण कम्पित पयोधरतटों से युक्त, क्रौंचमाला रूपी मेखलाओं से रहित पुलिनजघनों वाली, शफर रूपी नेत्रों से इधर-उधर देखती हुई, शैबल, प्रवाल रूपी कस्तूरिका से चिह्नित मुखों को नये जलरूपी वस्त्र से ढकती हुयी, नदियों रूपी अभिसारिकाओं से आलिंगित था । " इसमें प्रमुख रूपक निम्नगा में अभिसारिका का आरोप है, हंसनपुर, पयोधरतट, क्रौंचमालामेखला, पुलिनजघन, शफरलोचनादि रूपक अंगभूत हैं, अतः यह सांगरूपक है । 1. तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः । -मम्मट काव्यप्रकाश 10/139 2. 22 रंगशाला रागशैलषस्य, ज्येष्ठवणिका रूपजातरूपस्य, अम्भोजिनी विभ्रमभ्रमराणां, शरत्कालागति । - तिलकमंजरी, पृ० 3. मुद्रितमुखरहंसनूपुर स्वनाभिः त्वरित गति बशोत्कम्पमान पृथुपयोधरतटाभिमुक्तवाचालक्रौंचमालामेखलानि पुलिनजघनस्थलानि विभ्रतीमिरितस्ततोनिम्ननाभिसारिका मिर्गाढमुपगूढम् । -- तिलकमंजरी, पृ० 120-121
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy