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________________ तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन 117 (आ) भूतैरिवाधिष्ठिता, कृतान्तदूतैरिव कटाक्षिता, कलिकालेनेव कवलिता समग्रपापग्रहपीडामिरिव क्रोडीकृता -प. 40 (इ) पातालपंकादिवोन्मग्नम्, प्रलयघनदिनादिव निःसृतम्, कृतान्तमुखकुहरादिवाकृष्टम्, महाकालकरकपालोदरादिवोच्छलितम्, तक्षकाशीविष. वेगवेदनयेवोन्मुक्तम् पृ. 192 ___(ई)."अमर्षमय इव क्रौर्यमय इव, वैरमय इव, ब्याजमय इव, हिंसामय इव विभाव्यमाने पृ. 88 (4) प्रसन्न होकर लक्ष्मी ने मेघवाहन पर जो दृष्टि डाली, उसके लिए कवि की उत्प्रेक्षा है- 'लक्ष्मी अपनी दुग्धधवल दृष्टि की किरणों से मेघवाहन के शरीर को मानो अमृत से सींच रही थी, हिम-जल से स्नान करा रही थी, चन्दनांगराग से मल रही थी, तथा मालती की कलियों से आच्छादित कर रही थी। ___(5) मन्ये, शंके, ध्रुवं, प्राय, नूनं इव आदि उत्प्रेक्षा के वाचक हैं। मन्ये तथा शंके वाचक शब्दों से युक्त दो उदाहरण दिये जाते हैं(अ) मन्ये का प्रयोग अस्या नेत्रयुगेन नीरजदलस्रग्दामदेध्यंQहा, चंचत्पार्वणचन्द्रमण्डलरूचा वक्त्रारविन्देन च । स्वामालोक्य दृशं रूचं च विजितां तुल्यं त्रपाबाघितै बंद्धानिर्जनसंचरेषु कमलर्मन्ये वनेषु स्थितिः॥ पृ. 256 (आ) शके का प्रयोग जानीय श्रुतशालिनो खलु युवामावां प्रकृत्यजूंनी त्रैलोक्ये वपुरीदगन्ययुवतेः संभाव्यते कि क्वचित् । एतत्प्रष्टुमपास्तनीलनलिनश्रेणीविकाशधिणी, शंकेऽस्याः समुपागते मृगदृशः कर्णान्तिकं लोचने ॥ . प. 248 (6) वैताढ्य पर्वत को जम्बूद्वीप का उष्णीषपट, भारतवर्ष का मानसूत्र, आकाश रूपी सागर का सेतुबन्ध, पृथ्वी की सीमा रेखा, पूर्व दिशा का हार कहा गया है। 1. चक्षुषः क्षरता क्षीरधवलेनाशुविसरेण सुधारसेनेदाप्यायन्ती, हिमजलेनेव स्नापयन्ती, मलयजांगरागेणेव लिम्पन्ती, मालतीमुकुलदाममिरिवाच्छादयन्ती"राज्ञो वपुः तिलकमंजरी, पृ. 56 2. उष्णीषपदमिव जम्बूद्धीपस्य, मानसूत्रमिव भारतवर्षस्य, सेतुबन्धमिव गगनसिन्धो, सीमन्तमिव भुवः, हारमिव वैश्रवणहरितः..... .... :: . -तिलकमंजरी, पृ. 239
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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