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________________ 116 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन हरण धनपाल के उपमा प्रयोग के नैपुण्य को प्रदर्शित करते हैं तथा उनके साम्यदर्शन की क्षमता को दर्शित करते हैं । उत्प्रेक्षा सम्पूर्ण तिलकमंजरी में उत्प्रेक्षा अलंकार का चमत्कार प्रदर्शित किया गया है । नवीन कल्पनाओं से काव्य को अलंकृत करना गद्य-काव्य की विशेषता है । कुछ विशिष्ट एवं असाधारण उत्प्रेक्षाओं के उदाहरण दिये जाते हैं । जहां प्रकृत अर्थात् उपमेय की सम (उपमान) के साथ सम्भावना वर्णित की जाती है वहां उत्प्रेक्षा होती है । तिलकमंजरी में विभिन्न प्रकार की उत्प्रेक्षाओं के प्रयोग को दर्शित करने वाले कुछ उदाहरण नीचे दिये जाते हैं - (I) प्रातःकाल में चन्द्रमा के अस्त होने की कवि ने सुन्दर उत्प्रेक्षा की है- 'प्रात:कालीन वायु के संसर्ग से ठिठुरने के कारण यह चन्द्रमा दिशाओं रूपी शय्यातल से अपने किरणरूपी पैरों को सिकोड़ रहा है। यहां वायु के संसर्ग से ठिठुरना, पैरों को सिकोड़ने का हेतु है, अत: हेतूत्प्रेक्षा है। (2) विजय-प्रयाण के समय समरकेतु द्वारा धारण की गयी एकावली के विषय में सुन्दर उत्प्रेक्षा की गयी है - "बड़े-बड़े निर्मल मोतियों से निर्मित आनामिलम्ब एकावली ऐसी प्रतीत होती थी मानो तत्समय प्रदृष्ट, वक्षःस्थल में निवास करने वाली राजलक्ष्मी की दोनों ओर बहने वाली आनन्दाश्रुओं की धारा हो।" (3) धनपाल उत्प्रेक्षित वस्तु अथवा स्थिति या भाव को अधिकाधिक प्रभावोत्पादक बनाने के लिए एक साथ अनेक उत्प्रेक्षाओं का प्रयोग करते हैं । उदाहरण के लिए (अ) विस्मयमयोव कौतुकमयीवाश्चर्यमयीव प्रमोदमयीव क्रीडामयीवोत्सवमयीव निर्वृत्तिमयीव धृतिमयीव हासमयीव सा विभावरी विराममभजत् पृ. 62 1. 'सम्भावनमथोत्प्रेक्षा प्रकृतस्य समेन यत्' -मम्मट, काव्यप्रकाश, 10-136 1. उद्यज्जाडय इव प्रगेतनमरूत्संसर्गतश्चन्द्रमा:, पादानेष दिगन्ततल्पतलतः संकोयत्यायतान् । तिलकमंजरी, पृ. 238 स्थूलस्वच्छमुक्ताफलग्रथितां तत्क्षणप्रमुदितायाः वक्षस्थलभाजो राजलक्ष्म्या: लोचनद्वयादानन्दाश्रुपद्धतिमिव द्विधाप्रवृत्तां नामिचक्रचुम्बिनीमेकावली दधानो... -वही, पृ. 115
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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