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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
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विस्तृत वर्णन करते हैं । यथा मेघवाहन के वर्णन में- "तस्यां च""सार्वभौमो राजा मेघवाहनो नाम" इस लम्बे वाक्य से उसका प्रथम परिचय दिया गया है । तदनन्तर यस्य, यः, यस्मिन् से प्रारम्भ होने वाले सात वाक्यों द्वारा उसकी अन्य विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। इस वर्णन को और अधिक विस्तृत बनाने के लिए तथा विषय का पूरा-पूरा स्पष्ट चित्र खींचने के लिए आगे उसने कदाचित् शब्द से प्रारम्भ होने वाले 13 वाक्यों की रचना की, जिसमें मेघवाहन के अन्य क्रिया-कलाप व मनोरंजन के साधनों का वर्णन किया गया है। इसी प्रकार अयोध्या नगरी के वर्णन में पहले “अस्ति रभ्यतानिरस्त..."यथार्थामिघाना नगरी।" इस लम्बे वाक्य से उसके मुख्य स्वरूप का दिग्दर्शन कराया गया है, तत्पश्चान् या, यस्याः, यस्याम् यत्र वाले 9 वाक्यों से उसका संश्लिष्ट चित्र खींचा गया है। वर्णन प्रसंगों में सर्वत्र यही वृत्ति दृष्टिगत होती है । भाषा तथा संस्कृत भाषा पर अधिकार
... भाषा-कवि चित्रकार अपने हृदयगत भावों को भाषा रूपी रंगों से रंगकर अपने चित्रों को सहृदयों के हृदय में उतारता है, अत: भाषा, कवि एवं सहृदय रूपी दो किनारों को मिलाने वाली तरंग है । सहृदय के हृदय को आकर्षित करने के लिए कवि अपनी भाषा का शृंगार करता है । इसके लिए वह सुन्दर व आकर्षक शब्द योजनाओं सहित वाक्यों की रचना करता है । गति व संचालन वाक्य के प्रमुख सौंदर्य-संघटक उपादान हैं तथा इसके लिए ईश्वरप्रदत्त प्रतिभा के अतिरिक्त निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता होती है ।
धनपाल की भाषा अत्यन्त ओजस्वी एवं प्रवाहमयी है। उनकी भाषा में सर्वत्र शब्दगत सौन्दर्य व अर्थ का उचित समन्वय प्राप्त होता है, केवल शब्द श्रवण मात्र से अर्थ की अभिव्यंजना हो जाती है । शब्द कवि के हृदयगत भावों के साथ-साथ स्वाभाविक, सहज रूप से अवतरित होते हैं न कि जानबूझकर लादे हुए प्रतीत होते हैं।
कवि की प्रवाहमयी भाषा को प्रदर्शित करने वाले कुछ सुन्दर वाक्य रचनाओं के उदाहरण दिये जाते हैं
(1) धनपाल अनेक उत्प्रेक्षाओं के एक साथ प्रयोग द्वारा वाक्य को गतिमान बनाते हैं, जैसे
पृथ्वीमय इव स्थैर्ये, तिग्मांशुमय इव तेजसि, सरस्वतीमय इव वचसि, लक्ष्मीमय इव लावण्ये, सुधामय इव माधुर्य, तपोमय इवासाध्यसाधनेषु,-पृ14
1. तिलकमंजरी, पृ. 12-18 2. वही, पृ. 7-12