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________________ १५९ नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : अलंकार प्रस्तुत पद्य में २२ वें तीर्थङ्कर किस प्रकार के होंगे, उसे उपमा द्वारा स्पष्ट किया गया है - दन्तीव भूरितरदानविराजमानो धा धुरं कलयितुं वृषवत्प्रगल्भः । तेजोधिकः सकलजन्तुषु केसरीव लक्ष्म्या स्वयंवर विधावुपकीर्णमाल्यः ।। यहाँ पर दन्तीव - अर्थात् (भावी पुत्र) गज के समान भूरितर दान से युक्त होगा जिस प्रकार हाथी के मद से दानवारि निकलता है, निरन्तर दान जल-मदजल झरता रहता है । उसी प्रकार पुत्र दानी होगा । दूसरी उपमा केसरीव अर्थात् सिंह के समान तेजस्वी होगा, सिंह जिस प्रकार पराक्रमशाली होता है उसी प्रकार के पराक्रम से युक्त पुत्र होगा। द्वितीय, तृतीय चतुर्थ तथा पंचम सर्ग में विशेष रूप से ही उपमायें देखने को मिलती हैं । कुछ अन्य उपमायें द्रष्टव्य हैं - पीयूषरश्मिरिव' : अमृतकिरण के समान लोगों के नेत्रों को आनन्दित करने वाला होगा। शीतेतरांशुरिव' : सूर्य के समान प्रतापशाली होगा । सिन्धुशुक्तिरिव : सीप के भीतर मोती रहता है, उसके प्रभाव से सीप सुशोभित होता है । महारानी शिवा बालक को गर्भ में धारण किये हुये पुत्र के तेज के कारण सीप के समान सुशोभित हो रही थी । उक्त उपमान द्वारा महारानी के तेज की अभिव्यंजना प्रकट की है, क्योंकि गर्भ धारण करने से प्रायः स्त्रियाँ शिथिलता को प्राप्त हो जाती हैं । शरीर पीला पड़ जाता है । परन्तु शिवा का सौन्दर्य वृद्धि को प्राप्त कर रहा था। सक्रियेव' : पुण्यकृत्य के समान समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाला पुत्र उत्पन्न हुआ, सक्रिया कहने से पुत्र के सौन्दर्य और सौभाग्य की अभिव्यंजना होती है। अन्य उपमायें : अट्टहासा इव' : हास के ढेर के समान पर्वत सुशोभित हुआ। सकज्जलोल्लासमिव : सुमेरु के श्रृङ्ग पर बादल गिरे हुये थे, जिससे वह ऐसा मालूम पड़ता था मानो दीपक के ऊपर काजल सुशोभित हो रहा हो । जलते हुए दीपक द्वारा सुमेरु पर्वत की ओर कज्जल द्वारा नारियों की अभिव्यंजना भी है। १. नेमिनिर्वाण, ३/४० ३. वही, ३/४१ ५. वही, ४/१३ ७. वही, ५/१६ २. वही, ३/४१ ४. नेमिनिर्वाण, ४/१ ६. वही,५/१४
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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