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________________ १५८ श्रीमद्वाग्भटविरचित नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन (जिनके शरीर की कान्ति सुवर्ण के समान उज्ज्वल थी, जो भक्त पुरुषों को स्वर्ग-अपवर्ग आदि उत्तम गति को देने वाले थे तथा जो स्वसमान कालिक नारायण के चित्त (विष्णु) को सदा प्रसन्न किया करते थे, वे विनता माता के पुत्र श्रेयांसनाथ भगवान् तुम सबको विभूति प्रदान करें।) इस पद्य का श्लेष से दूसरा अर्थ - (जिसके शरीर की आभा सुवर्ण के समान पीतवर्ण है, जो विभु है, श्रेयान्- कल्याणरूप है । उच्च आकाश में सुन्दर गमन को देता हुआ श्रीकृष्ण के चित्त को आनन्दित करता हुआ वह विनतासुत - वैनतेय गरुड तुम सबको विभूति देने वाला हो) श्लेष के प्रयोग के अन्य स्थल - द्वादश सर्ग - ७,४४, ४६ अर्थालंकार वाग्भट ने जहाँ एक ओर अनुप्रास आदि शब्दालंकार की चमत्कृति पूर्ण संयोजना की है, वहीं दूसरी ओर उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अर्थालंकारों के माध्यम से वर्णनीय विषयों की मंजुल अभिव्यंजना भी प्रस्तुत कर अपने पाण्डित्य का परिचय दिया है। नेमिनिर्वाण में उपमा, उत्प्रेक्षा, सन्देह, रूपक, परिसंख्या, समासोक्ति, उदाहरण, सहोक्ति, विरोधाभास आदि अलंकारों का आह्लादक एवं मनोरम प्रयोग हुआ है । इन अलंकारों के प्रयोग में कवि को कहाँ तक सफलता प्राप्त हुई, यह प्रस्तुत अलंकारों के उदाहरणों से जाना जा सकता है। उपमा : दो भिन्न पदार्थों के साधर्म्य को उपमान-उपमेय भाव से वर्णन करना उपमा अलंकार कहलाता है। उपमा अलंकार सबसे प्रधान है, यह अर्थालंकारों में सादृश्यमूलक अलंकारों का आधार है । भावों द्वारा कल्पना को जितनी अधिक प्रेरणा प्राप्त होती है । उपमान योजना उतनी ही सार्थक सिद्ध होती है । कवि वाग्भट ने नेमिनिर्वाण में अनेक स्थलों पर उपमा अलंकार का प्रयोग किया है । इन्होंने उपमानों का चयन प्रकृति, दृश्य जगत्, पुराण और इतिहास से किया है । उनकी उपमा में सरलता, सुन्दरता एवं स्वाभाविकता सहज ही झलकती है । यथा
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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