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________________ श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन काव्यमिवोज्ज्वल' : महाकवि जिस प्रकार अपने काव्य में उचित रूप से अलंकार की योजना करता है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण ने अलंकार धारण किये । १६० - पौराणिक उपमाओं में पार्श्वनाथमिव : पार्श्वनाथ और कमठ के सम्बन्ध का स्मरण दिलाते हुये उनकी आकृति के साथ द्वारिकावती की समता प्रस्तुत की है । उपमा-प्रयोग के अन्य स्थल - प्रथम सर्ग - ४५, ४९, ७१ तृतीय सर्ग - ३४ पंचम सर्ग - ५, २३ अष्टम सर्ग - २७, ५४, ५५, ६०, ६५ एकादश सर्ग - ३६ त्रयोदश सर्ग - २० चतुर्दश सर्ग - पंचदश सर्ग - १, १९, २१, २३, ६६, ७७, ७८, ७९, ८१ द्वितीय सर्ग - ५२ चतुर्थ सर्ग - १३, १४ षष्ठ सर्ग - १ प्रयोग के अन्य स्थल उत्प्रेक्षा : उपमेय की उपमान के साथ संभावना या कल्पना उत्प्रेक्षा कहलाती है । नेमिनिर्वाण काव्य में वाग्भट ने उत्प्रेक्षा का अच्छा प्रयोग किया है । चतुर्थ सर्ग का निम्न श्लोक देखियेगर्भावस्था के कारण माता शिवादवी का शरीर पीत वर्ण हो गया था । कवि उत्प्रेक्षा के द्वारा वर्णन करते हैं - - नवम सर्ग - ५, ८, ९, १२, १८ द्वादश सर्ग - २, ६६ श्रीजिनस्य यशसा जगद्बहिःसर्पतेव वपुरन्तरस्थितेः । वासरैः कतिपयैर्नृपप्रिया प्राप पक्वशरपाण्डुरं वपुः ।। गर्भ में तीर्थङ्कर नेमिनाथ है अभी से उनका यश विस्तार प्राप्त कर रहा है । अतएव उनके यश के कारण मानों माता का शरीर पीत हो गया है । तृतीय सर्ग - ६, ११, २० अष्टम सर्ग - ५० एकादश सर्ग - १४, १५, २१, ३४ १ प्रथम सर्ग - ३, ३५, ३६ पंचम सर्ग - १०, ३२ नवम सर्ग - ३ पंचदश सर्ग - २०, २२ रूपक : उपमान और उपमेय का अभेद वर्णन रूपक अलंकार होता है। वाग्भट ने रूपक का बड़े ही प्रभावशाली व सुन्दर ढंग से चित्रण किया है । २. नेमिनिर्वाण, ५ / ६१ २. वही, ४ / ५१ ३. वही, ४ / ५
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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