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________________ नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : महाकाव्य १३५ नैमिनिर्वाण' में यथावसर सभी रसों का विन्यास हुआ है, परन्तु अंगीरस शान्त है अंगरूप में उभयविध श्रृंगार, वीर, भयानक, करुण, रौद्र, अद्भुत आदि रसों का प्रयोग हुआ है । नेमिनिर्वाण महाकाव्य के नायक धीरोदत्त क्षत्रिय कुल में उत्पन्न जैन धर्म के बाईसवें तीर्थकर (यदुवंशी) नेमि हैं। निमिनिर्वाण' का नामकरण चरित नायक नैमि' के नाम पर किया गया है। उसके प्रत्येक सर्ग का प्रारम्भ एक छन्द से हुआ है तथा सर्गान्त में छन्द परिवर्तन भी किया गया है। नमिनिर्वाण' में आर्या, सोमराजी, शशिवदना, अनुष्टुप, विद्युन्माला, प्रमाणिका, हंसरुत, माद्यश्रृंग, मणिरंग, बन्धूक, रूवमवती, मत्ता, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, भ्रमरविलसिता, स्त्री, रथोद्धता, शालिनी, अच्युत, वंशस्थ, द्रुतविलम्बित, कुसुमविचित्रा, स्रग्विणी, मौक्तिकदाम, तामरस, प्रमिताक्षरा, भुजंगप्रयात, प्रियंवदा, तोटक, रुचिरा, नन्दिनी, चन्द्रिका, मजुभाषिणी, मत्तमयूर, वसन्ततिलका अशोकमालिनी, प्रहरणकलिका, मालिनी, शशिकलिका, शरमाला, हरिणी, पृथ्वी, शिखरिणी, मन्दाक्रान्ता, शार्दूल विक्रीडित, स्रग्धरा, चण्डवृष्टि, वियोगिनी, पुष्पिताग्रा इन ५० छन्दों का प्रयोग हुआ है तथा अनुप्रास, यमक तथा श्लेष आदि शब्दालंकारों का प्रयोग हुआ है। निमिनिर्वाण' में प्रकृति वर्णन के अन्तर्गत कवि ने वन, नगर, नदी, चन्द्रोदय, सूर्योदय, प्रातः, मध्याह्न, सायं, रात्रि, ऋतु आदि का वर्णन बड़ा ही मनोहर किया है। इसमें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, चारों पुरुषार्थों का वर्णन हुआ है। किन्तु काव्य का प्रधान रस शान्त होने से मुख्य फल मोक्ष (निर्वाण) रूप चतुर्थ पुरुषार्थ है। नैमिनिर्वाण' में जातीय गुणों, सर्वोत्कृष्ट उपलब्धियों और परम्परागत अनुभवों का पुंजीभूत रसात्मक रूप पाया जाता है इसमें युद्ध और भंयकर यात्रा जैसे साहसिक कार्य भले ही न हो पर जीवन के विविध क्षेत्र और विभिन्न मानसिक दशाओं का चित्रण किया गया है। घटना प्रवाह के क्षीण होने पर भी अलंकृत वर्णनों की प्रधानता है । कवि ने जीवन के विभिन्न व्यापारों और परिस्थितियों के चित्रण में पुत्र चिन्ता, प्रेम, विवाह, कुमारोदय, मधुपान, गोष्ठी, वन विहार, जलक्रीड़ा, आदि का निरूपण किया है। कवि ने युग जीवन का चित्रण वस्तु व्यापारों और परिस्थितियों के द्वारा प्रस्तुत किया है। महाकाव्य के समस्त शास्त्रीय लक्षणों के साथ अलौकिक और अति प्राकृतिक तत्त्व भी निहित हैं । मानव मात्र के हृदय में प्रतिष्ठित धार्मिक वृत्तियों पौराणिक और अन्धविश्वासों का भी कवि ने इस . काव्य में ग्रन्थन किया है। । उक्त सभी विवेचनों के आधार पर कहा जा सकता है कि नैमिनिर्वाण' में महाकाल के सभी लक्षण भली भाँति घटित हुये हैं । अतएव नमिनिर्वाण' शास्त्रीय दृष्टि से एक सफल महाकाव्य है । महाकवि वाग्भट ने नैमिनिर्वाण' में महाकाव्य का कोई भी आवश्यक वर्ण्य विषय नहीं छोड़ा है।
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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