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________________ अध्याय-तीन (ग) नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प । छन्द-योजना व्याकरण की व्युत्पत्ति के अनुसार 'छन्दयति चदि असून्' अर्थात् जो प्रसन्न करे उसी को छन्द कहते हैं । बहुत से कोषकारों ने छन्द को पद्य का पर्याय माना है । साहित्यदर्पणकार ने भी 'छन्दोबद्धं पदं पद्यम्' अर्थात् विशिष्ट छन्द में बन्धे हुये पद को पद्य कहा है । ये छन्द लघु, गुरु, स्वर या मात्रा की नियमित वर्ण योजना से बनते हैं । कवि अपनी भावाभिव्यक्ति के लिये गद्य की अपेक्षा पद्य का आश्रय अधिक लेता है, क्योंकि अपने अभिप्राय को चमत्कृति एवं प्रभावपूर्ण ढंग से उपस्थित करने के लिये पद्य का माध्यम अधिक सुकर है । पद्यों की सहायता से ही अधिकांश प्राचीन भारतीय साहित्य शिष्य परम्परा के माध्यम से जीवित बचा रहा है। संस्कृत भाषा में तो पद्यों (छन्दों) का अतीव महत्त्वपूर्ण स्थान है। संस्कृत की यह अपनी विशेषता है कि इसमें गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, राजनीति जैसे नीरस विषय भी छन्दोमय होकर मनोरम, मृदुल एवं आकर्षक लगने लगते हैं। आचार्य क्षेमेन्द्र ने भावानुरूप छन्दों के निवेश को उचित बतलाते हुये कहा है कि :वृत्तरत्नावली कामादस्थाने विनिवेशिता । कथयत्यज्ञतामेव मेखलेव गले कृता ।। अर्थात् अनुचित स्थान पर किया गया छन्दों का प्रयोग गले में धारण की गई मेखला की तरह कवि की अज्ञता का ही बोध करता है । अतः स्पष्ट है कि छन्दों का प्रयोग भी वर्णन के अनुसार ही किया जाना चाहिए । ___काव्य में छन्द योजना ऐसी होती है कि जो रस और भाव के अनुकूल होती है । संसार में कथायें तीन रूपों में मिलती हैं :- (१) पद्य, (२) गद्य, और (३) गीत । वेद को भी छान्दस् कहा है, किन्तु वेद की भाषा भी तीनों रूपों में मिलती है । वैदिक साहित्य में केवल सात ही छन्दों का प्रयोग हुआ है :- (१) गायत्री (२) उष्णिक् (३) अनुष्टुप (४) वृहती (५) पंक्ति (६) त्रिष्टुप् और (७) जगती । ___ कात्यायन ने आगे चलकर इनके भी बहुत से भेद कर डाले हैं । इन्हीं सात प्रकार के वैदिक छन्दों के आधार पर पीछे के कवियों ने जो बहुत से छन्द बना लिये हैं, उन्हें लौकिक छन्द कहते हैं । इसीलिये छन्दों के दो भेद हुये हैं - वैदिक और लौकिक । छन्दों को देखने से प्रीत होता है कि स्मृति में स्थिर रखने के लिए तथा पढ़ने में प्रवाह, सुगमता, मधुरता और गति प्राप्त करने के लिये छन्दों की सृष्टि की गई है । इसीलिये छन्द १. सुवृत्ततिलक, तृतीय विन्यास,१३
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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