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________________ १३४ श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन अतएव उक्त लक्षणों के आधार पर महाकाव्य के कुछ सामान्य स्वरूपाधायक तत्त्वों का निर्देश कर देना उचित होगा। (१) महाकाव्य का कथानक सर्गबद्ध हो, जिसमें कम से कम आठ सर्ग हो । कथानक को ऐतिहासिक या सज्जनाश्रित होना चाहिए तथा उसमें नाटक की पाँचों सन्धियाँ विद्यमान हों। (२) महाकाव्य के प्रारम्भ में विविध मंगलाचरणों - नमस्कारात्मक, आशीर्वादात्मक या वस्तुनिर्देश में से कोई एक मंगलाचरण हो । मंगलाचरण के बाद कथानक के प्रारम्भ में पहले यदि दुर्जन-निन्दा और सज्जन प्रशंसा हो तो अच्छा है। (३) श्रृंगार, वीर अथवा शान्त में से कोई एक रस अंगी हो, शेष रसों का प्रयोग अंग रूप में हुआ हो। (४) देवता, सवंश में उत्पन्न क्षत्रिय अथवा कोई महान् चरित्र ही महाकाव्य का नायक हो सकता है । कहीं-कहीं एक वंश के अनेक राजा भी नायक हो सकते हैं। (५) महाकाव्य का नामकरण कवि, वर्णनीय कथावस्तु अथवा नायक के नाम पर होना चाहिए। (६) प्रत्येक सर्ग में एक ही छन्द का प्रयोग परन्तु सर्गन्त में छन्द का परिवर्तन हो । किसी सर्ग में अनेक छन्दों का प्रयोग किया जा सकता है। (७) किसी एक सर्ग में विभिन्न चित्रालंकारों और अन्य शब्दालंकारों का पर्याप्त प्रयोम ___किया गया हो, तो अच्छा है । (८) महाकाव्य में प्रकृति वर्णन के अन्तर्गत नगर, वन, प्रातःकाल, चन्द्रोदय, सूर्योदय, युद्ध तथा षड्ऋतु का यथासंभव सांगोपांग वर्णन किया गया हो । (९) काव्य का अन्य स्वाभिप्रायांकित, स्वनामांकित, इष्टनामांकित अथवा मंगलांकित होना चाहिये। (१०) चतुर्वर्ग - धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में से कोई एक महाकाव्य का फल होता है। अब यहाँ पर उक्त तत्त्वों के आधार पर नैमिनिर्वाण' के महाकाव्यत्व की समीक्षा प्रस्तुत है। । नमिनिर्वाण' की कथावस्तु १५ सर्गों में विभक्त है । इसका कथानक ऐतिहासिक है। यह गुणभद्र के उत्तरपुराण तथा जिनसेन के हरिवंशपुराण से लिया गया है । इसमें नाटक की पाँचों सन्धियाँ मुख, प्रतिमुख, गर्भ, अवमर्श और निर्वहण का यथा स्थान प्रयोग हुआ है । काव्य का प्रारम्भ मंगल शब्द "श्री" शब्द के साथ हुआ है तथा २४ तीर्थङ्ककरों की क्रमशः वन्दना की गई है। अतएव यहाँ नमस्कारात्मक मंगलाचरण है। साथ ही कवि ने तीर्थडकर नेमिनाथ की स्तुति करते हुए कथानक का भी निर्देश कर दिया है, अतः वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण भी माना जा सकता है । महाकाव्य की परम्परा के अनुसार नैमिनिर्वाण' में दुर्जन निन्दा और सज्जन प्रशंसा भी की गई है।
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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