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________________ सर्गानुसार कथानक ११३ शोभा देखने के लिए चले गये । इसके बाद सारथी ने अरिष्टनेमि से रैवतक पर्वत पर चढ़ने का निवेदन किया । सप्तम सर्ग: __ रैवतक पर्वत पर पदोन्मत्त मधुकरों से युक्त हस्ति-युगल क्रीड़ा कर रहे थे । चम्पा और सहकार की छटा इस पर्वत भूमि को स्वर्णमय बना रही थी। हे पराक्रमी राजन् ! कल्पतरु से भरे पूरे इस पर्वत की उस मनोरम भूमि को देखिये जो बाण-वृक्षों से भरी पड़ी है । यह एकान्त किन्तु चित्ताकर्षक स्थान नित्यप्रति देवताओं के साथ स्वर्ग लोक से आने वाली सुरांगनाओं की संभोगाभिलाषा को उकसा देता है । अहा ! कितनी मनोहारी यह जलराशि है । इसके किनारे पर सीधे सीधे धूप (काष्ठ विशेष) के वृक्ष खड़े हुए हैं । यहाँ हरिण वायु के समान तीव्र वेग से दौड़ते हैं और लक्ष्मी भी कमलों में स्थान पाकर हर्षोल्लास से भर जाती है । पुष्पराशि मण्डित बाणों के वृक्ष भ्रमरों की मलिन पंक्ति को धारण किये हुए हैं तथा सरोवरों के निकट मयूरों का कलाप सदैव मधुर ध्वनि उत्पन्न करता रहता है । कुरबक, अशोक, तिलक आदि वृक्ष अपनी शोभा से नन्दन वन को भी तिरस्कृत कर रहे थे । सम-विषम और निम्न-उन्नत भूमि में प्रवाहित करने वाला नदियों का प्रवाह वायु के कारण सर्प की उपमा धारण करता है । सारथि कहता है कि हे रक्षक ! कदली वन की वह भूमि अत्यन्त रमणीय है, क्योंकि उसमें कमलों का समूह है । सुन्दर कुरवक वृक्षों का कुंज है । मनोहारिणी सुन्दरियाँ हैं, बक पंक्ति से रहित निर्मल एवं रमणीय जलराशि है और मनोहर शब्द करने वाला हरिण-यूथ भी है। हे देव ! जिस प्रकार आप अपने गुणों से अद्भुत प्रताप वाले इस वंश को भूषित करते हैं, उसी तरह सत्य वैभव वाला यह पर्वत देवों को भी आश्रय देने के कारण पृथ्वी को सुशोभित करता है । सारथि के वचनों से पर्वतराज की शोभा देखने वाले नेमिनाथ ने सघन छाया में निर्मित पट-मन्दिर में निवास किया । अष्टम सर्ग : इसके बाद विभिन्न प्रकार के वृक्षों से युक्त उस पर्वत पर क्रीड़ा करने के लिये माधव (श्रीकृष्ण) पहुँचे । यदुवंशी नारियों ने अपने प्रियों के साथ विभिन्न प्रकार की विलास-क्रियायें सम्पन्न की । वन विहार के अनन्तर यादवों ने जल विहार किया । सान करने से स्त्रियों के नखक्षत स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे। जिससे वे मूर्तिधारी कामदेव की वर्ण पंक्ति के समान प्रतीत होते थे। रमणियों के केश से गिरे हुये भ्रमर से युक्त केतकी पुष्प तैरती हुई नौकाओं के समान प्रतीत होते थे।
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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