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________________ श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन क्योंकि दोनों की वंश परम्परा भिन्न-भिन्न है और दोनों का कार्यकाल भी एक नहीं है । वाग्भट प्रथम ८८ परिचय, कुल परम्परा निर्णयसागर प्रेस बम्बई की काव्यमाला में प्रकाशित "नेमिनिर्वाण" काव्य में सर्गान्त पंक्तियों में इस काव्य के रचयिता का नाम वाग्भट दिया गया है । परन्तु कवि के परिचय के लिये कोई प्रशस्ति नहीं दी गई है । किन्तु हस्तलिखित प्रतियों में निम्नलिखित प्रशस्ति मिलती है जिससे कवि का बहुत थोड़ा परिचय मिल जाता है - अहिछत्रपुरोत्पन्नप्राग्वाट कुलशालिनः । छाहडस्य सुतश्चक्रे प्रबन्धं वाग्भटः कवि ॥ प्रशस्ति पद्य से ज्ञात होता है कि वाग्भट प्रथम प्राग्वाट (पोरवाड) कुल के थे और इनके पिता का नाम “छाहड़” था । इनका जन्म “अहिच्छत्रपुर" में हुआ था । म०म० हीरा चन्द ओझा जी के अनुसार नागौर का पुराना नाम नागपुर या अहिच्छत्रपुर है। महाभारत में जिस “अहिच्छत्र” का उल्लेख मिलता है, वह तो वर्तमान रामनगर (जिला बरेली, उ०प्र०) माना जाता है ।' नायाधम्मका में अहिच्छत्र का निर्देश आया है पर यह "अहिच्छत्र" चम्पा के उत्तर पूर्व में अवस्थित था । विविध तीर्थ कल्प में अहिच्छत्र का दूसरा नाम शंखवती नगरी आया है। इस प्रकार अहिच्छत्र के विभिन्न निर्देशों के आधार पर निर्णय करना कठिन है कि वाग्भट ने किस अहिच्छत्र को सुशोभित किया था । डा० जगदीश चन्द जैन ने अहिच्छत्र की अवस्थिति रामनगर में ही मानी है, किन्तु हमें इस सम्बन्ध में ओझा जी का मत ही अधिक प्रमाणित प्रतीत होता है और कवि वाग्भट का जन्म स्थान नागौर ही जँचता है । सम्प्रदाय वाट प्रथम के सम्बन्ध में इतना तो निःसन्दिग्ध है कि ये जैन धर्म के अनुयायी थे। क्योंकि नेमि - निर्वाण तथा वाग्भटालंकार के निम्न आरम्भ मंगल श्लोक जैन धर्म और जैन दर्शन के प्रति वाग्भट की आस्था एवं मनसंतुष्टि दोनों का संकेत करता मालूम पड़ता है । श्री नाभिसूनोः पदपद्मयुग्मनखाः सुखानि प्रथयन्तु ते वः । समं नगन्नाकिशिरः किरीटसंघट्टविस्रस्तमणीयितं यैः ।।" २. इति श्री नेमि निर्कने वाग्भटरचिते महाकाव्ये - नेमि निर्वाण, सर्गान्त पुष्पिका ५. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ० ४८० ७. नेमि निर्वाण, १/१-२४ १. वाग्भटालंकार भूमिका, पृ० - १ ३. प्रशस्ति श्लोक सं० ८७ (यह प्रशस्ति श्रवणबेलगोल के स्व० पं० दौर्बलि जिनदास शास्त्री के पुस्तकालय वाली ४. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भाग-२, पृ० ३२९ ५. संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ०-२८२ प्रशस्ति नेमिनिर्वाण काव्य की प्रति में भी प्राप्त है ।) - सर्गः ।
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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