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क्षत्रचूड़ामणिः । आश्वासन देकर पुत्रके पालन करनेकी चिन्ताको दृरकर कहाकि तुम्हारे इस पूत्रको राजपुत्रोंके सदृश कोई दूसरा पालन करेगा इस लिये तुम इसको यहां ही रखकर छिप चलो । रानी भी विवश होकर उसके कथनानुसार पिताकी मुद्रासे युक्त पुत्रको जीव यह भाशीर्वाद देकर छिप गई और उसी समय उडते फिरते हुए गन्धोत्कटने उस पुत्रको देखकर उठा लिया और जीव यह आशीर्वाद सुनकर जीवक व जीवंघर उसका नाम रक्खा । और घर आकर अपनी मुनन्दनामकी स्त्री पर ऋत्रिम कोपकर कहा मूर्खे ! तूने जीवित पुत्रको कैसे मरा हुआ कह दिया वह भी भानन्दसे उस जीवित पुत्रको गोदमें लेकर फूली न समाई और मारे खुसीके उसका चित्त उछलने लगा फिर क्या था उसने बालककी अच्छी तरह पालन पोषण किया।
पुत्रकी खुशीमें गन्धोत्कटने एक बड़ा भारी उत्सव किया निसको मुह काष्टाङ्गारने अपने राजा होनेकी खुशीमें समझकर गन्धोत्कटको बुलाकर बहुत कुछ धन दिया फिर गन्धोत्कटने उस समयके उत्पन्न हुए छोटे २फलोको प्राप्तकर उनके साथ जीवंधर कुमारका पालन किया फिर कुछ दिनके पश्चात् उस कुमारके पुण्य प्रभावसे सुनंदाके एक और गन्धोत्कट नामका पुत्र हुआ जिससे जीवंधरकी शोभा और बढ़ गई। उधर धात्री वेष धारी देवी विजया रानीको दण्डकारुण्यमें तपस्वियोंके समीप छोड़कर स्वयं किसी बहानेसे चली गई।