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४ श्री जीवंधर स्वामीका संक्षिप्त जीवन चरित्र । एक दिन मंत्रियोंसे यह बहाना बनाया कि एक देव मुझसे राजाको मार डालनेके लिये आग्रह करता है ।
मंत्रियोंमेंसे एक धर्मदत्त नामके मन्त्रीने उसकी दुष्टता समझ कर बहुत समझाया किन्तु उस दुष्टने उसकी बात अनसुनी करके राजाके मारनेके लिये एक बड़ी भारी सेना भेजी। राजाने द्वारपालके द्वारा मारनेके लिये आई हुई सेनाको सुनकर रानीको यन्त्रमें बिठलाकर आकाशमें उड़ा दिया और स्वयं युद्ध करनेके लिये चल दिया युद्ध करते हुए राजाने विचारा कि वृथा मनुष्यहत्या हो रही है यह विचार कर राना युद्धसे विरक्त हो गया और संसारकी अनित्यताका विचार करने लगा अन्तमें सम्पूर्ण परिग्रहोंको छोड़कर अपने आत्मस्वरूपका चितवन करता हुआ युद्ध में मारा गया और मरकर देव हुआ। उस समय सारे पुरवासी लोग उदास और विरक्त होकर नाना प्रकारके विचार करने लगे और काष्टाङ्गार निष्कंटक होकर राज्य करने लगा।
उसी नगरीमें एक गन्धोक्तट नामका सेठ रहता था एक दिन वह तात्कालिक उत्पन्न हुए और फिर मरे हुए पुत्रको लेकर स्मशानमें उसकी मृत्यु क्रिया करनेके लिये गया तत्पश्चात् किसी मुनिके कथनानुसार वहां पर जीवित पुत्रकी खोज करने लगा। दैव योगसे सत्यन्धरकी विनया रानीको उस यन्त्रने उसी स्मशान भूमिमें जा पटका और उसी विपत्ति अवस्थामें मूर्छित रानीके एक सुन्दर पुत्र हुआ उस पुत्रके पुण्य माहत्म्यसे वहां एक देवी धायका रूप धारण करके आई और उसने विजया रानीको