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________________ क्षत्रचूड़ामणिः । नहीं (विभेति ) डरता है ( अन्येभ्यो ) और कामोंसे (f) क्या (भेष्यति) डरेगा ॥ ११ ॥ पाक त्यागं विवेकं च वैभवं मानतामपि । कामार्ताःखलुमुश्चन्ति किमन्यैःस्वञ्च जीवितम्॥१२॥ _. अन्वयार्थः-(कामार्ताः) कामसे पीड़ित पुरुष (पाकं) भोजन (त्याग) दान (विवेक) विवेक (वैभवं सम्पत्ति (च) और (मानतां) पूज्यता (अपि ) भी ( खलु ) निश्चयसे (मुश्चन्ति ) छोड़ देते हैं (अन्यः किं) और तो क्या (स्वञ्च जीवितम्) अपने जीवनको (अपि) भी (मुञ्चन्ति) छोड़ देते हैं ॥१२॥ पुनरैच्छ दयं दातुं काष्टाङ्गाराय काश्यपीम् । अविचारितरम्यं हि रागान्धानां विचेष्टितम् ॥१३॥ अन्वयार्थः-(पुनः) पश्चात् (अयं) इस राजाने (काष्टाङ्गाराय) काष्ठाङ्गारको (काश्यपीम्) पृथवी (दातुं) देनेकी (ऐच्छत् ) इच्छाकी अत्र नीतिः (हि) निश्चयसे रागान्धानां) स्त्री प्रेमसे अन्धे पुरुषोंकी ( विचेष्टितम् ) चेष्टाएं ( अबिचारितरम्य ) विना विचारके सुन्दर (भवंति) होती हैं ॥१३॥ तावतातं समभ्धेत्य मन्त्रिमुरुषा अबू बुधन् । देवदेवैरपि ज्ञातं विज्ञाप्यं श्रूयतामिदम् ॥ १४ ॥ ____ अन्वयार्थः-(तावता) उसी समय (मन्त्रिमुख्याः) प्रधान मन्त्री (तं ) उप्त राजाके (समभ्येत्य) समीप आकार (अबूबुवन्) समझाते भये (हे देव) हे राजन् ( देवैः ) आपसे (ज्ञातमपि) नानी हुई भी (इदं) यह प्रार्थना ( श्रुयतां) सुनने योग्य है ॥ १४॥
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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