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________________ प्रथमोलम्बः। (काचित्) कोई (न) नहीं अत्र नीतिः (हि ) निश्चयसे (सामाग्यं ) अच्छामाग्य (सुदुर्लभम् ) बड़ा दुर्लभ है ॥ ८ ॥ निष्कंटकाधिराज्योऽयं राजा राज्ञी मनारतम् । रमयनान्यदज्ञासी त्याज्ञप्राग्रहरोऽपिसन् ॥ ९॥ अन्वयार्थः-(निष्कंटकाधिराज्यः) निष्कंटक है राज्य जिसका ऐसा (अयंराजा) यह राजा (पाज्ञवाग्रहरः) विद्वानोंमें अग्रसर भी (सन् ) होता हुआ ( अनारतम् ) निरंतर ( राज्ञों ) रानीको (रमयन् ) रमन करता हुआ (अन्यत) और कुछ (न) नहीं (अज्ञासीत् ) जानता था ॥९॥ विषयासक्तचित्तानां गुणः को वा न नश्यति । नवैदुष्यं न मनुष्यं नाभिजात्यं न सत्यवाक् ॥१०॥ __अन्वयार्थः--(विषयासक्तचित्तानां) विषयोंमें है आसक्त चित्त जिनका ऐसे पुरुषोंका (को वा ) कौनसा (गुणः !) गुण (न) नहीं (नश्यति) नाश होता है (तेषु, उनमें (नवैदुष्यं) न पण्डित्यपना (न मानुष्यं) न मानुष्यपना (नामिनात्यं) न कुलीनता (न सत्यवाकू) न सचाई रहती है ॥ १० ॥ पराधन जादेन्यात्पैशून्यातपरिवादतः। पराभवाकिमन्येभ्यो न विमेति हि कामुकः॥११॥ __ अन्वयार्थः- ( कामुकः ) कामी पुरुष ( पराराधन जात् ) दूसरेकी सेवासे उत्पन्न ( दैन्यात ) दीनतासे (पैशुन्यात् ) चुगली पनसे ( परिवादतः ) निंदासे और (पराभवात् ) तिरस्कारसे (न)
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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