SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ दशमो लम्बः । स्वामीने (चक्र आरुह्य) चन्द्रक यंत्र पर चढ़कर (हेलया) क्रीड़ा मात्रसे ही ( शीघ्रं ) शीघ्र ही ( अलातचक्रतः ) अलात चक्रसे तीनों वराहोंको (विव्याध) भेदन कर दिया। अत्र नीतिः ! निश्चयसे (किं) क्या (भानुः) सूर्य ( तमोहरः न भवति ) अन्धकारको नाश करनेवाला नहीं है किन्तु है ही ॥ २६ ॥ अथ गोविन्दराजोऽपि राज्ञामित्थमचीकवत् । सात्यंधरिरयं हीति स्थाने हि कृतिनां गिरः॥ २७॥ ____ अन्वमार्थः- (अथ) इसके अनंतर ( गोविन्दरामः अपि) गोविन्दराजने भी (राज्ञां समक्षं) वहां राजाओंके अगाड़ी " (अयं सात्यंधरिः) यह सत्यंधर महाराजके पुत्र हैं इति " (इत्थं अचीकथत् ) इस प्रकार कहा । अत्र नीतिः ! (हि) निश्चयसे (कतिनां) बुद्धिमान पुरुषोंकी ( गिरः ) वाणी ( स्थाने योग्य स्थानमें ही (भवति) होती है ॥ २७ ॥ राजानोऽप्येवमस्माभिर रीत्यभानन्दिषुः । आचष्टे हि नरेन्द्रत्वमालीहादिषु पाटवम् ॥ २८ ॥ अन्वयार्थः-राजानः अपि) यह बात सुनकर राजा लोगोंने भी " (एवं) ऐसा ( अस्माभिः ) हम लोग भी ( अस्मारि) स्मरण करते हैं " (इति) इस प्रकार (अभ्यनन्दिषुः) राजपुत्रकी तारीफ की। अत्र नीतिः ! (हि) निश्रयसे (आलीढादिषु पाटवम्) आलीढादि पांच स्थानोंमें चतुरताने जीवंधरके (नरेन्द्रत्वं) राजापनेको आचष्टे) कहा अर्थात् धनुषधारियोंमें जीवंधरकी चतुराई देखकर राना लोगोंने यह निश्चय कर लिया कि अवश्य यह सत्यंधर महारानके पुत्र हैं ॥ २८ ॥
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy