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________________ क्षत्रचूड़ामणिः । २०१ यामास) प्रार्थना की । अत्र नीतिः ! (हि) निश्चयसे (जन्मान्तरानुवन्धौ) जन्म जन्मान्तरसे बंधे हुए ( रागद्वेषौ ) रागद्वेष (न नश्यतः) नाश नहीं होते हैं ॥ ३२ ॥ प लव्धो वर इति प्रोक्तं बुद्धिषेणेन सा सती । मनोभुवो वचो मेने स्त्रीणां मौठ्यं हि भूषणम् ॥३३॥ अन्वयार्थः -- ( तदा) उस समय ( सा सती) उस श्रेष्ठ कन्याने " (लब्धो वरः ) तूने अपने वरको प्राप्त कर लिया " (इति) इस प्रकार (बुद्धिषेणेन प्रोक्तं) बुद्धिषेणसे कहे हुए वचनको ( मनोभुवः) कामदेवका ( वचः) वचन (मेने) समझा । अत्र नीतिः ! (हि) निश्चय से ( स्त्रीणां) स्त्रियोंका (मौढ्यं ) मूढता ही (भूषणम्) भूषण है ॥ ३३ ॥ कुमारं दर्शिताकारं दृष्ट्वा जिह्वाय तत्क्षणे । मृतकल्पा हि कल्पन्ते निर्लज्जा निष्कृपा इव ॥ ३४ ॥ अन्वयार्थः -- ( फिर वह कन्या (तत्क्षणे ) उसी समय (दर्शिताकारं) दिखलाया है असलीरूप जिन्होंने ऐसे (कुमारं ) कुमारको ( दृष्ट्वा ) देखकर ( जिह्नाय ) लज्जित हुई । अत्र नीति: ! (हि) निश्चय से (निर्लज्जाः) लज्जा रहित पुरुष (निष्कृपाः इव) दया हीन पुरुषोंकी तरह ( मृतकल्पा : ) जीते हुए भी मरे हुएके समान ( कल्पन्ते ) कल्पना किये जाते हैं ॥ ३४ ॥ पतिकृत्येन पत्नीं तां सुतरां सोऽप्यतोषयत् । संसारोऽपि हि सारः स्यादम्पत्योरेकैकण्ठयोः ॥ ३५ ॥
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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