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________________ क्षत्रवृजमणिः । १९९ मूकायां ) निष्फल होनेपर ( मानिनः) मानी पुरुष (न जीवन्ति) नहीं जीते हैं ॥ २६ ॥ बाढमस्ति समस्तेपीत्यब्रवीत्प्रौढनैपुणः । उक्तिचातुर्यतो दायमुक्तार्थे हि विशेषतः ॥ २७॥ अन्वयार्थः-(प्रौढनैपुणः ) अत्यन्त चतुर उस बुड्ढ़ेने ( बाढं) हां (ममशक्तिः) मेरी शक्ति (समस्तेऽपि) सम्पूर्ण विषयोंमें ( अस्ति ) है " (इति) इस प्रकार ( अबवीत् ) कहा ( उत्तर दिया ) अत्र नीतिः ! ( हि ) निश्चयसे (उक्तार्थे) कहे हुए पदार्थके विषयमें ( उक्तिचातुर्यतः ) कहनेकी चतुरतासे ही (विशेषतः) बहुत (दाढयं) दृढता ( भवति ) होती है ।। २७ ॥ अभीप्सितवरप्राप्तावुपायं साप्ययाचत । रागान्धे हि न जागर्ति याश्चादैन्यवितर्कणम् ॥२८॥ ____अन्वयार्थः-तब ( सापि ) उस सुरमञ्जरीने भी ( अभीप्सितवरप्राप्तौ ) अपने चाहे हुए वरकी प्राप्ति विषयक ( उपायं अयाचत) उपायकी याचना की । अत्र नीतिः ! (हि) निश्चयसे (रागान्धे) प्रेमसे अन्धे पुरुषोंमें ( याञ्चादैन्यवितर्कणम् ) याचना संमंधी दीनताका विचार ( न जागर्ति ) नहीं होता है ॥ २८ ॥ कामं कामप्रदं सोऽयं कामदेवमुपादिशत् । मनीषितानुकूलं हि प्रीणयेत्प्राणिनां मनः ॥ २९ ॥ ___ अन्वयार्थः-फिर (सः अयं) उस बुड्ढेने (काम) अतिशय रीतिसे (कामपदं) सब मनोरथोंको सफल करनेवाला (कामदेवं ) कामदेवकी मूर्तिकी पूजाका (उपादिशत् ) उपदेश दिया। अत्र नीतिः
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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