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________________ १९८ नवमो लम्बः । गानकौशलतः सैनं शक्तिमन्तममन्यत । विशेषज्ञा हि बुध्यन्ते सदसन्तौ कुतश्चन ॥ २४ ॥ अन्वयार्थः - (सा) उस सुरमञ्जरीने ( गान कौशलतः ) गानेकी कुशलता से ( एनं ) इस बुड्ढेको ( शक्तिमन्तं ) और कार्य करनेमें भी शक्तिवाला ( अमन्यत ) समझा । अत्र नीति: । (हि) निश्वय से ( विशेषज्ञाः ) विशेष बात को जाननेवाले मनुष्य ( कुतश्वन ) किसी न किसी कारण से (सदसन्तौ) सद असत् बातका ( बुध्यन्ते) निश्चय कर लिया करते हैं ॥ २४ ॥ ततः स्वकार्यमप्यस्मात्सादराभूत्परीक्षितुम् । स्वकार्येषु हि तात्पर्य स्वभावादेव देहिनाम् ॥ २५ ॥ अन्वयार्थः : - (ततः) इस लिये (सा) वह सुरमञ्जरी (अस्म तू ) उस बूढे ब्राह्मणसे ( स्व कार्यं अपि ) अपने कार्यको भी ( परीक्षितुं ) परीक्षा करनेके लिये ( सादरा अभूत् ) आदरयुक्त हुई । अत्र नीतिः (हि) निश्चय से ( देहिनाम् ) देह धारियों को ( स्वभावात् ) स्वभावसे ही (स्वकार्येषु ) अपने कार्यों में ( तात्पर्यं भवति ) तत्परता हुआ करती है ॥ २५ ॥ गाववच्छक्तिरन्यत्र किमस्तीत्यन्वयुक्त सा । याञ्चायां फलमूकायां न हि जीवन्ति मानिनः ॥ २६ ॥ अन्वयार्थ :- (सा) उस सुरमञ्जरीने " ( गानवत् ) गानेके सदृश (अन्यत्रापि ) दूसरे कार्यों में भी ( किं ) क्या तुम्हारी ( शक्तिः अस्ति ) शक्ति है " ( इति ) इस प्रकार ( अन्वयुक्त ) पूछा अत्र नीतिः । (हि) निश्चय से ( याञ्चायां ) याचनाके ( फल
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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