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क्षत्र चूड़ामणिः ।
१८९ उसके अत्यन्त आग्रह करनेपर ( तथाविधौ ) इस विषय में (अनुमन्ता अभूत् ) अपनी अनुमति दी । अत्र नीतिः ! (हि) निश्चय से ( वाञ्छितार्थेऽपि ) इच्छित पदार्थ में भी ( वशिनां ) जितेन्द्रिय पुरुषों के ( कार्य ) अधीरता ( न दृश्यते) नहीं देखी जाती है ॥७२॥ अथ सागरदत्तेन दत्तां सत्यंधरात्मजः । व्यवहद्विमलां कन्यां हव्यवाहसमक्षकम् ॥ ७३ ॥
अन्वयार्थः—– (अथ) इसके अनंतर (सत्यंधरात्मनः) सत्यंधर राजाके पुत्र जीवंधर स्वामीने ( सागरदत्तेन ) सागरदत्त से (दत्तां) दी हुई ( विमला) विमला नामकी (कन्यां ) कन्याको ( हव्यवाह समक्षकम् ) अग्निकी साक्षी पूर्वक ( व्यवहत् ) व्याहा ॥ ७३ ॥
इति श्रीमद्वादिभसिंहसूरिविरचिते क्षत्रचूडामणौ सान्वयार्थो त्रिमलालम्भो नाम अष्टमो लम्बः ॥