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________________ नवमो लम्बः। नवमो लम्बः अथ व्यूढामतिस्निग्धां गाढस्नेहोऽवभूदिमाम् । वाञ्छिता यदि वाञ्छेयुः ससारैव हि संमृतिः॥१॥ ____अन्वयार्थः- अथ) विमलाको व्याहनेके अनंतर (गाढ़स्नेहः) अत्यंत स्नेही जीवंधर स्वामीने (व्यूढां) नई व्याही हुई (इमां) इस विमला नामकी अपनी स्त्रीको ( अतिस्निग्यां ) बहुत प्यारी ( अन्वभूत ) अनुभवन की । अत्र नीतिः ! ( हि ) निश्चयसे (वांछिता) निनको हम चाहते हैं (यदि) अगर वे भी ( वांछेयुः) हमें चाहें तो (संसृतिः) संसार भी (सप्तारा एव) सार रूप ही ततोऽनुनीय तां हित्वा स मित्रैः समगच्छत । अन्यरोधि न हि कापि वर्तते वशिनां मनः ।२। __अन्धयार्थः-(ततः) फिर (सः) वे जीवंधर स्वामो (तां) उस अपनी स्त्री को ( अनुनीय ) समझा कर और (हित्वा) वहीं छोड़कर (मित्रैः) अपने मित्रोंसे (समगच्छत) आन मिले । अत्र नीतिः ! (हि) निश्चयसे (वशिनां) नितेन्द्रिय पुरुषोंका (मनः) मन (क्वापि। कहीं पर भी (अन्यरोधि) दूसरोंसे रुकनेवाला (न वर्तते) नहीं होता है ॥ २॥ वरचिह तमालोक्य बहमन्यन्त बान्धवाः । ऐहिकातिशयप्रीतिरतिमात्रा हि देहिनाम् ॥ ३ ॥
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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