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क्षत्रचूड़ामणिः । (चेष्टितम् ) चेष्टा है । बुद्धिमानोंकी प्रीति इप्त प्रकार नहीं होती है ॥ ३१ ॥ जामातरि चमत्कारो राज्ञोऽभून्मित्रवीक्षणात् । कृतिनोऽपि न गण्या हि वीतस्फीतपरिच्छदाः ॥३२॥
अन्वयार्थः--( मित्रवीक्षणात् ) स्वामीके मित्रोंको देखनेसे ( अज्ञः ) राजा दृढ़ मित्रको ( जामातरि.) अपने दामाद जीवंधर स्वामीके विषयमें ( चमत्कारः अभूत् ) अत्यन्त आश्चर्य हुआ। अत्र नीतिः (हि) निश्चयसे (बीतस्फीलपरिच्छिदाः अपि) विना समृद्धसेनादिक सामग्रीके भी ( कतिनः ) पुण्यात्मा पुरुष (न गण्या) नहीं समझने चाहिये ॥ ३२ ॥ अर्थात् उनको बहुत सामग्री युक्त समझना चाहिये । समित्रावर जोऽहृष्यदतिमात्रमसौ कृती। एकेच्छानामतुच्छानां न ह्यन्यत्संगमात्सुखम् ॥३३॥
__ अन्वयार्थः--(समित्रावरजः) छोटे भाई और मित्रों सहित ( असौ कृति ) विद्वान् नीवंधर कुमार ( अतिमात्रं ) अत्यंत (अहृष्यत्) हर्षित हुए । अत्र नीतिः (हि) निश्चयसे (अतुच्छानां) श्रेष्ट पुरुषोंके (एकेच्छानां) एकसी इच्छा रखनेवालोंके (संगमात्) समागमसे ( अन्यत्सुखं ) और कोई दूसरा सुख ( न भवति ) नहीं है ॥ ३३ ॥ अयथापुरसंमानात्समशेत सखीनसौ। विशेते हि विशेषज्ञो विशेषाकारवीक्षणात् ॥३४॥ ____ अन्वयार्थः-( असौ ) इन जीवंधर कुमारने ( अयथापुरसंमानात ) पूर्वमें कभी नहीं किये हुए मित्रोंके द्वारा अपना