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________________ अष्टमो लम्बः । ... अन्वयार्थः- (असौ) उस स्त्रीने “(स्वामिन् ! ) हे स्वामी ! ( अत्र ) यहां पर ( च ) और ( आयुधशालायां ) आयुधशालामें ( एकदा एव ) एक ही समयमें (स्वामिनं ) आपको (अविशेषतः) एक रूपसे ( अद्राक्षम् ) देखा है" (इति) इस प्रकार (प्रत्यभाषत) प्रत्युत्तर दिया ॥ ६ ॥ अतिमात्रं पवित्रोऽयमचित्रीयत तच्छृतेः । अयुक्तं खलु दृट वा श्रुतं वा विस्मयावहम् ॥७॥ ____ अन्वयार्थः-(अयं पवित्रः) पवित्र जीवंधर कुमार (तच्छ्रुतेः) उसकी बात सुननेसे (अतिमात्रं) अत्यन्त ( अचित्रीयत ) आश्चर्य युक्त हुए । अत्र नीतिः (खलु) निश्चयसे (दृष्टं) देखी हुई (वा) अथवा (श्रुतं वा) सुनी हुई (अयुक्त) अनहोनी बात (विस्मयावहम् ) आश्चर्य करनेवाली होती है ॥ ७ ॥ नन्दाख्यः किमिहायात इत्ययं पुनरीहत । .. संसारविषये सद्यः स्वतो हि मनसो गतिः॥८॥ __ अन्वयार्थः- (पुनः) फिर ( अयं ) इन जीवंधर कुमारने " ( किम् ) क्या ( इह ) यहां ( नंदाव्यः ) मेरा छोटा भाई नंदाढ्य ( आयात ) आ गया है " (इति) इस प्रकार (औहत) विचार किया। अत्र नीतिः ( हि ) निश्चयसे ( संसारविषये ) संसारके विषयोंमें (मनसो गतिः) मनकी प्रवृत्ति (सद्यः) शीघ्र ही (स्वतः) अपने आप (स्यात् ) हो जाती है ॥ ८ ॥ प्रागेव तन्मनोवृत्तेः प्रययौ तत्र तहपुः। आस्थायां हि विना यत्नमस्ति वाकायचेष्टितम् ॥९॥
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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