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________________ सप्तमो लम्बः । त्रिचतुःपञ्चभिर्युक्ता गुणशिक्षाणुभिर्व्रतैः । तत्त्वधरुचिसंपन्नाः सावद्या गृहमेधिनः ॥ २२ ॥ अन्वयार्थः-- (त्रिचतुःपञ्चभिः) क्रमसे तीन, चार, पांच, ( गुण शिक्षाणुभिः व्रतैः ) गुणव्रत, शिक्षात्रत और अणुव्रतों से ( युक्ताः ) सहित ( तत्वधी रुचिसंपन्नाः ) सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन संपन्न (सावधा) कुछ दोष सहित (गृहमेधिनः संति) गृहस्थ पुरुष होते हैं ॥ २२ ॥ १४२ अहिंसा सत्यमस्तेयं स्वस्त्री मितवसुग्रहौ । मद्यमांसमधुत्यागैस्तेषां मूलगुणाष्टकम् || २३ ॥ अन्वयार्थः – (तेषां ) उन गृहस्थ पुरुषोंके ( मद्यमांस मधुत्यागैः सह ) मयत्याग, मांसत्याग और मधुत्याग सहित (अहिंसा) हिंसा न करना, (सत्यं सच बोलेना, (अस्तेयं) चोरी नँ करना, (स्वस्त्रीमितवसु ग्रह) स्वस्त्री संतोष और परमितवस्तुका संग्रह (इति मूलगुणाष्टकम् ) यह आठ मूलगुण कहलाते हैं ॥ २३ ॥ भोगोपभोग संहारोऽनर्थदण्डव्रतान्वितः । गुणानुवृंहणादज्ञेयो दिग्वतेन गुणव्रतम् ॥ २४ ॥ अन्वयार्थः- (गुणानुबृंहणात् ) मूल गुणोंकी वृद्धि करने से (अनर्थदण्डव्रतान्वितः) अनर्थदण्डे व्रत युक्त, ( भागोपभोगसंहारः) भोगोपभोगे परिमाण, (दिखतेन दिखत सहित यह तीन ( गुणत्रतम् ज्ञेयम्) गुणत्रत जानने चाहिये || २४ || सप्राषधोपवासेन व्रतं सामायिकेन च । देशावकाशिकेन स्याद्वैयावृत्यं तु शिक्षकम् || २५॥
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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