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सप्तमो लम्बः । नम् भवति) छोटे आदमियोंके लिये राज्याभिषेकके समान होता है ॥ ९॥ इतस्ततो मया मह्य गम्यते कार्यकाम्यया । स्वास्थ्यं स्वास्थ्तमं भूयात्कार्येऽप्यार्यदृशो मम ॥१०॥ ___अन्वयार्थः-(हे मह्य ! )हे पूज्य ! (मया) मैं (कार्यकाम्यया) कार्यकी ईच्छासे (इतस्ततः) इधरउधर (गभ्यते) जारहा हूं । मम कार्ये )मेरे कार्यमें (आर्यदृशः) आपके दर्शनसे स्वास्थ्यं) सुख (स्वास्थ्य तमं भूयात् ) और भी अधिक सुख देनेवाला होवे ॥१०॥ इत्युक्तेन कुमारेण प्रत्युक्तो वृषलः पुनः ।। स्वास्थ्यं नाम न कृष्यादि जायमानं कृषीवल ॥११॥
अन्वयार्थः-(इत्युक्तेन कुमारेण) इस प्रकार कहे हुए कुमारने (पुनः वृषलः प्रत्युक्तः) फिर उस शूद्र पुरुषसे कहा । कृषीबल ! ) हे किसान (कृष्यादि जायमानं) खेती आदि कर्मोंसे उत्पन्न सुख (न स्वास्थ्यं नाम) सच्चा सुख नहीं है ।। ११ ॥ षट्कर्मोपस्थितं स्वास्थ्यं तृष्णाबीजं विनश्वरम् । पापहेतुः परापेक्षि दुरन्तं दुःखमिश्रितम् ॥ १२ ॥
अन्वयार्थः-(षट् कर्मोपस्थितं स्वास्थ्य) असि, मैसि, कैषि, वाणिज्य, शिल्प और विद्या इन छह कर्मोंसे उत्पन्न सुख (तृष्णाबीज) तृष्णाका कारण, (विनश्वरम् ) नाशशील, (पापहेतुः) पापका कारण (परापेक्षो) दूसरेकी अपेक्षा रखनेवाला, (दुरन्तं) अन्तमें दुःख देनेवाला, (दुःखमिश्रितम् ) और दुःखसे मिश्रित है ॥ १२ ॥ आत्मोत्थमात्मना साध्यमव्याबादमनुत्तरम् । अनन्तं स्वास्थ्यमानन्दमतृष्णमपवर्गजम् ॥ १३ ॥