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________________ षष्टो लम्बः । तत्वज्ञानविहीनानां नैर्ग्रन्थ्यमपि निष्फलम | न हि स्थाल्यादिभिः साध्यमन्नमन्यैरतण्डुलैः ॥१८॥ अन्वयार्थ : - (तत्वज्ञानविहीनानां ) यथार्थ तत्वज्ञानसे रहित जीवों (नैग्रन्थ्यं अपि) मुनिधर्म भी (निष्फलं ) है । अत्रनीति: ! ( हि निश्चय से ( अतण्डुलैः) चावलादिकों के बिना ( अन्यैः स्थाल्यादिभिः) अन्य वटलोई, जल, अग्नि आदिकके द्वारा (अन्नं साध्यं न भवति) अन्नपाक नहीं हो सकता ॥ १८ ॥ अर्थात् उपदान कारणके बिना केवल निमित्त कारणसे safe कार्य france नहीं हो सकता ॥ १८ ॥ तत्त्वज्ञानं च जीवादितत्त्वयाथात्म्यनिश्चयः । अन्यथा धीस्तु लोकेऽस्मिन्मिथ्याज्ञानं हि कथ्यते । १९। अन्वयार्थः - ( जीवादितत्वयाथात्म्य निश्चयः ) जीवादिक (जीव, अजीव, आसवं, बंधे, संवर, निर्जरा, मोल) इन सात तत्वों के असाधारण स्वरूपका संशय विपर्यय और अनध्यैवसाय रहित निश्चय करना ही (तत्वज्ञानं च भवति) सम्यग्ज्ञान कहलाता है । ( तु पुनः ) और ( अस्मिन् लोके ) इस लोक में ( अन्यथा धीः ) उपर्युक्त तत्वोंका विपरीत ज्ञान ही ( मिथ्या ज्ञानं कथ्यते ) मिथ्या ज्ञान कहलाता है ॥ १९ ॥ आप्तागमपदार्थाख्यतत्त्ववेदनतद्रुची । १२४ वृत्तं च तद्वयस्यात्मन्यस्वलयत्तिधारणम् ॥ २० ॥ अन्वयार्थः--( आप्तागमपदार्थाख्यतत्ववेदनतद्रुची ) आप्त, आगम, पदार्थ इन तीनोंके यथार्थ ज्ञानको ही सम्यग्ज्ञान कहते हैं। और इनमें रुचि व श्रद्धान होनेको सम्यग्दर्शन कहते हैं (च) और
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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