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________________ क्षत्रचूड़ामणिः । छटवां लम्ब। फिर कुछ दिन वहीं रहकर जीवंधर स्वामी वहांसे विना कहे ही चल दिये और मार्गमें अनेक तीर्थस्थानों को वन्दना करते हुए एक तपस्वियोंके आश्रममें पहुंचे वहांपर तपस्वियोंको पंचाग्नि आदिके मध्य में तप करते हुए देखकर उन्हें अनेक प्रकारसे धर्मका उपदेश देकर, सच्चे धर्मका स्वरूप समझा कर भगवत प्रणीत सम्यक् तपमें प्रवृत कराया फिर वहांसे चलकर जीवंधर कुमार दक्षिण देशके सहस्र कूट चैत्यालयमें पहुंचे वहांपर जिन मंदिरके किवाड़ बन्द देखकर बाहरसे ही भगवतका स्तवन प्रारम्भ किया जिसके प्रभावसे जिनमन्दिरके किवाड़ खुल गये यह देख. कर पूर्वसे रहनेवाला वहांका एक मनुष्य जीवंधर स्वामीसे आकर विनयपूर्वक मिला उससे जीवंधर स्वामीने पूछा तुम कौन हो और किस लिये यहां रहते हो उसने कहां मैं क्षेमपुरीमें रहनेवाले सुभद्र नामके सेठका किंकर हूं उसकी क्षेमश्री नामकी कन्याके जन्मलग्नमें ज्योतिषियोंने यह गणना की है कि जिसके आनेपर सहस्र कूट मन्दिरके किवाड़ खुलेंगे वह इसका पति होगा उस मनुष्यकी परीक्षा करनेके लिये भेना हुआ यहां रहता हूं भाग्यवश ! आज आपके शुभागमनसे निन मंदिरके किवाड़ खुल गए हैं इसलिये आप यहां पर कुछ देर ठहरिये ताकि मैं अपने स्वामीको आपके शुभागमनकी सूचना दे आऊं फिर उस मनुष्यने शीघही अपने त्वामीके पास जाकः प्रसन्नता पूर्वक जीवंधर स्वामीका सारा वृतान्त कह सुनाया सुभद्र भी यह बात सुनकर शीघ्र
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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