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________________ १४ श्री जीवंधर स्वामीका संक्षिप्त जीवन चरित्र । वहां आया और जीवंधर स्वामीको पूजन करते हुए देखकर शीघ्र ही उनके शरीर और ऐश्वर्य आदिककी परीक्षा करली तानन्तर जीवंधर स्वामीको आने घर ले जाकर शुभ मुहूर्तमें क्षेमश्री नामकी अपनी कन्याका उनके साथ विवाह कर दिया। सातवां लम्ब। फिर क्षेत्रपुरीमें भी कुछ दिन रह कर जीवंधर स्वामी वहांसे चल दिये चलते समय विवाहके जो वस्त्राभूषण पहने हुए थे उन्हें किसी अच्छे पात्रको देनेके लिये उन्होंने विचार किया जब कोई अच्छा पात्र न मिला तो भाग्यवश मार्ग में जाते हुए एक किसानसे बातचीत कर उसे भद्र जान धर्मका उपदेश दे श्रावक बनाकर अपने सब बहु मूल्य वस्त्राभूषण उतारकर उसे दे दिये । . आगे चलकर एक बनमें जब कि वे विश्राम करनेके लिये बैठे हुए थे कि इतने में किसी विद्याधरकी स्त्री वहां आकर उन्हें दूरसे देखकर उनपर आसक्त हो गई और उनके समीप आकर यह बात बनाई कि मैं एक विद्याघरकी अनाथ क या ई मुझे मेरे छोटे भाईके सालेने जबरदस्ती लाकर अपनी स्त्रीके भयसे यहां लाकर छोड़ दिया है इसलिये आप मेरी रक्षा करें जीवंधर कुमार उसके ये बचन सुनकर एकांतमें परस्त्रीके मिलनेसे अत्यन्त मय. भीत हुए वे वहांसे जानेके लिये उद्युक्त ही थे इतनेमें ही दूरसे उन्होंने यह शब्द सुना कि हे प्राण प्यारी ! मुझे छोडकर कहां चली गई मेरे प्राण निकले जाते हैं इस शब्दके सुनतेही वह स्त्री
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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