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________________ १२ श्री नीवंधर स्वामीका संक्षिप्त जीवन चरित्र । पांचवां लम्ब। जीवंधरके कुंडलकी चोटसे दुःखित होकर हाथीने खाना पीना छोड़ दिया इस समाचारको सुन कर पूर्व कारणोंसे क्रोधित काष्टाङ्गारने जीवंधर स्वामीको पकड़नेके लिये अपने मथन नामके सालेको बहुत सेनाके साथ भेना । जीवंधर भी गुरुके समक्ष की हुई प्रतिज्ञाके अनुमार और गंधीत्कटके समझानेसे नहीं लड़ा फिर क्या था काष्टाङ्गारकी सेनाके मनुष्य उसके हाथ बांध कर रानाके सामने ले गये उस दुष्टने कुमारको जानसे मारडालनेके लिये आज्ञा दे दी मारनेके समय यक्षेन्द्र अपनी विक्रियांसे जीवंधर स्वामीको वहांसे उठा ले गया और अपने स्थान पर ले जा कर जीवंधर स्वामीका क्षीरसागरके जलसे अभिषेक कर उनको "अपनी इच्छानुसार रूप बनानेमें, गानेमें और सर्पका विष दूर करनेमें शक्तिमान तीन मन्त्रोंका उपदेश दिया " पश्चात् यक्षकी अनुमतिसे वहांसे चलकर कुमारने वनमें वन अग्निसे जलते हुए हाथियोंको देखकर सदय हृदय हो भगवानका स्तवन किया जिसके प्रभावसे उसी समय मेघगर्जना करते हुए वरसे यह देखकर जीवंधर स्वामीको अत्यन्त प्रसन्नता हुई पश्चात् वहांसे चलकर अनेक तीर्थ स्थानोंको पूजते हुए चन्द्राभा नगरीमें पहुंचे वहांके राजा धनपतिकी पुत्री पद्माको सांपने काट खाया था जिसको मन्त्रके प्रभावसे जीवदान देकर राजासे सम्मानित हुए अन्त में राजाने पद्माका जीवंधर स्वामीके -साथ विवाह कर दिया।
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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