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________________ क्षत्रचूड़ामणिः । १०५ अन्वयार्थ:-(सः दुर्मतिः) उस दुष्टबुद्धि काष्टाङ्गारने (तथाभूतं तं) बंधे हुए उस जीवंधरको (दृष्ट्वा ) देखकर (हन्तुं) मारनेके लिये सेनाको ( आह ) आज्ञा दी । अत्र नीतिः (हि) निश्चयसे (सतां) सन्जन पुरुषोंके अगाड़ी (प्रहता) नम्रता (शान्त्यै) उनको शान्त करनेवाली (भवति) होती है किन्तु (खलानां ) दुर्जन पुरुषोंके अगाड़ी नम्रता (दर्पकारणम् स्यात् ) अहंकारको बढानेवाली होती है ॥ १२ ॥ काष्टाङ्गारं कुमारोऽयं गुरुवाक्येन नावधीत् । न हि प्राणवियोगेऽपि प्राज्ञैलवयं गुरोर्वचः॥ १३ ॥ अन्वयार्थः-(अयं कुमारः) इस जीवंधरकुमारने (गुरुवाक्येन) अपने गुरुके बचनसे (काष्टाङ्गारं ) काष्टाङ्गारको (न अवधीत् ) नहीं मारा !* अत्र नीतिः (हि) निश्चयसे (प्राज्ञैः) बुद्धिमान पुरुष (प्राणवियोगे अपि) प्राणोंका विनाश उपस्थित होने पर भी (गुरोः बचः) गुरुके बचनोंका (न लय ) उल्लंघन नहीं करते हैं ॥१३॥ यक्षेण तत्क्षणे स्वामी स्मृतेनादायि कृत्यवित् । सचेतनः कथं नु स्यादकुर्वन्प्रत्युपक्रियाम् ॥ १४ ॥ ____ अन्वयार्थः-(तत्क्षणे) उसी समय (स्मृतेन यक्षेण । स्मरण किया हुआ यक्षेन्द्र (सत्यवित् स्वामी ) कार्यको जाननेवाले स्वामीको ( आदायि ) उठालेगया। अत्र नीतिः (हि) निश्चयसे (प्रत्युपक्रियां अकुर्वन् ) उपकारीके प्रत्युपकारको नहीं करनेवाला (कथं नु सचेतनः स्यात् ) कैसे सचेतन पुरुष कहला सकता है अर्थात् * पूर्व में जीपंधरकुमारसे आर्यनन्दी आचार्यने काष्टाङ्गारको न मारनेकी प्रतिज्ञा कराली थी ॥
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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