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________________ ३१२ वर्धमानचरितम पयोधर = स्तन, मेघ ५।९।४७ फल्गुभाव = निःसारता ११५६।१० परिणेता- पति ७।१३७७ बुद्धिदुर्विध = बुद्धिहीन ८।४२।९५ पवन = तीनवातवलय-धनोदधिवातवलय, भङ्ग = पराजय, बालोंका धुंघुरालापन ५।१४।४८ घनवातवलय और तनुवातवलय ७।१२।७७ भूति = संपत्ति, भस्म ८।३६।९४ पाञ्चजन्य - त्रिपृष्ठनारायणका शङ्ख ८८७।१०२ भूरिदक्षिण = अत्यन्त उदार ३।२।२२ पाण्डु = चक्रवर्तीकी एक निधि १४।२५।१७१ मधुप = भ्रमर, मद्यपायी १७।३।२२७ पाद = चरण, किरण ५।२६।५० मनसिशम = कामदेव ११६६।१२ पाशिन् = वरुण १३।४३।१६० महाकाल ( भूरिकाल ) - चक्रवर्तीकी पिङ्गल = चक्रवर्तीकी एक निधि १४।२५।१७१ एक निधि १४।२५।१७१ पीतवासस = त्रिपृष्ठनारायण १०८४।१३० माणव = चक्रवर्तीकी एक निधि १४।२५।१७१ पुरुहूतभूति = इन्द्रके समान विभूतिसे युक्त मालर = विल्वफल ५।१८।४९ १॥३७॥६ मित्र = सूर्य, सुहृद् १३१४०।१५९ पुलाका = तुच्छ १३।२।१५३ मखच्छद = मुखका परदा ९।१२।१०४ पुलिन्द = भील ३।३९।२५ मषा = साँचा ११।१९।१३४ पुष्कर = आकाश , ८।३८।९४ मृगेन्द्रविष्टर = सिंहासन २।२।१३ पुष्पधनुष = कामदेव १॥६८।१२ मेघपदवी = मेघोंका मार्ग-आकाश १३।८।१५४ पुष्पोद्गम = वसन्त ११३८।६ मौक्तिकावली तपका एक भेद १६०४५।२२४ पूर्व = चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वाङ्ग होता है रत्नमालिका = तपका एक भेद १६।४६।२२४ __और चौरासी लाख पूर्वाङ्गोंका एक पूर्व होता है रथाङ्ग-पाणि = चक्रपाणि-त्रिपृष्ठनारायण १४॥३९।१७३ १०।१।१३२ पृथुक - बच्चे ७।३७६ राजक = राजसमूह २।६८२१ प्रङ्खोलित = हिलाया हुआ ११५३।९ राजहंस = जिसकी चोंच और चरण लाल प्रधि = चक्रधारा ८.५८९७ होते हैं ऐसा हंस, श्रेष्ठ राजा .६६२७३ प्रताप = तेज ६॥३४॥६८ रोहिणी = एक विद्या ८.५६।८३ प्रभंकरी = एक विद्या ७।५७।८३ लतालय = निकुञ्ज–लतागृह १२।३०।१४७ प्रमादभवागस् = प्रमादसे होनेवाले अपराध वज्रभूषितकर = हीरासे सुशोभित हाथवाला १५।१३७।२०४ पुरुष १३।१३।१५५ प्रायोपवेश = एकसंन्यासमरण १६।६३।२२६ वज्रसार = वज्रके समान सुदृढ़ १३।१३।१५५ प्रालेयशैल = हिमालय पर्वत ६।२७।६७ वदान्य = उदार-दानशील २०४८।१९ प्रष्ठ = कोष्ठ ७७२।८५ वरवारकामिनी ७.१००।८८ प्रसाधन - अलंकरण १०।८८।१३१ वसुवृष्टि = धनवृष्टि ११६०।११ प्रियजानि = जिसे स्त्री अत्यन्त प्रिय है ऐसा पुरुष वायवर्मन् = आकाश ७/८८।८६ ३।३१।३६ वाराङ्गना = वेश्या ३३८९।४४ प्रेयान् = अत्यन्त प्रिय ६।१०।६५ वारुणी = पश्चिम दिशा, मदिरा १३।३५।१५८ फल = वाणकी अनी-अग्रभाग ९।४४।१०८ वालधि = पूंछ ३।२६।२४
SR No.022642
Book TitleVardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Muni, Chunilal V Shah
PublisherChunilal V Shah
Publication Year1931
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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