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________________ भ्रान्तिमान् विरोधाभास प्रस्तावना रविमण्डलं विमलरत्नभुवि प्रातबिम्बितं सपदि मुग्धवधूम् । तपनीयदर्पणधिया दधतीमवलोक्य यत्र च जहास सखी || ५|४३ यस्मिन्नही नवपुरप्यभुजंगशीला मित्रानुरागसहितापि कलाधरेच्छा । भाति प्रतीतसुवयः स्थितिरप्यपक्षपाता निवासिजनता सरसाप्यरोगा || १७|१५ सुमनोऽन्वितमप्यपेतबोधं बहुपत्राकुलमप्यसैन्यमासीत् । विपरीतमपि प्रशंसिवल्लिवनमा भोगि ततः परं समन्तात् || १८|६ २५ उपर्युक्त श्लोकोंका अर्थ ग्रन्थके अनुवादमें देखिये । ३. साहित्यिक सुषमाका तीसरा अंग छन्दोंकी रसानुगुणता है । सुवृत्ततिलक में क्षेमेन्द्रने छन्दोंकी रसानुगुणताका वर्णन करते हुए कहा है 1 वीर रौद्रयोः । मालिनीं आरम्भे सर्गबन्धस्य कथाविस्तारसंग्रहे । शमोपदेशवृत्तान्ते सन्तः शंसन्त्यनुष्टुभम् ॥ शृंगारालम्बनोदारनायिका रूपवर्णनम् वसन्तादि तदङ्ग ं च सच्छायमुपजातिभिः ॥ रथोद्धता विभावेषु भव्या चन्द्रोदयादिषु । षाङ्गुण्यप्रगुणा नीतिवंशस्थेन विराजते ॥ वसन्ततिलकं भाति संकरे कुर्यात्सर्गस्य पर्यन्ते द्रुततालवत् ॥ उपपन्नपरिच्छेदकाले शिखरिणी वरा । औदार्य रुचिरौचित्यविचारे हरिणी साक्षेप क्रोधधिक्कारे परं पृथ्वी भरक्षमा । प्रावृट्प्रवासव्यसने मन्दाक्राता विराजते ॥ शौर्य स्तवे नृपादीनां शार्दूलक्रीडितं मतम् । सावेगपवनादीनां वर्णने स्रग्धरा वरा ॥ दोधक तोटकनकुंटयुक्तं मुक्तकमेव विराजति सूक्तम् । निर्विषमस्तु रसादिषु तेषां निर्नियमश्च सदा विनियोगः ॥ मता ॥ अर्थात् काव्यमें, कथाके विस्तार में और शान्तरसपूर्ण उपदेशमें सत्पुरुष अनुष्टुप्छन्दकी प्रशंसा करते हैं । शृङ्गाररसके आलम्बन तथा उत्कृष्ट नायिका के रूपवर्णनमें वसन्ततिलका और उपजातिछन्द सुशोभित होते हैं । चन्द्रोदय आदि विभावभावोंके वर्णनमें रथोद्धताछन्द अच्छा माना जाता है । सन्धिविग्रह आदि षड्गुणात्मक नीतिका उपदेश वंशस्थछन्दसे सुशोभित होता है तो सर्गान्त में मालिनी अधिक खिलती है । युक्तियुक्तवस्तुके परिज्ञानकालमें शिखरिणी तथा उदारता आदिके औचित्यवर्णनमें हरिणी छन्दकी योजना अच्छी मानी जाती है । राजाओंके शौर्यकी स्तुति करने में शार्दूलविक्रीडित और वेगशाली वायु आदिके वर्णनमें स्रग्धराछन्द श्रेष्ठ माना गया है । दोधक, ताटक तथा नर्कुट छन्द मुक्तकरूपसे सुशोभित हैं ।
SR No.022642
Book TitleVardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Muni, Chunilal V Shah
PublisherChunilal V Shah
Publication Year1931
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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