________________
साल सं० १२१६ छे तो चंद्रप्रभचरितनो पण ते लगभग रचना समय छे. [जुओ मारो 'जैनसाहित्यनो इतिहास' पारा ३९७) सं. १३०२ मां सर्वानन्दे ६१४१ श्लोकमां संस्कृतमां चंद्रप्रभचरित रच्यु (बृ.टि. तथा पाटण भंडार) अने ए उपरान्त कोई आंचलिक गच्छनाए ते चरित रच्युं छे के जेनी ९९ पत्रनी प्रत जामनगरमां छ; अने चंद्रप्रभचरितपर विषमपदवृत्ति खरतरगच्छना जिनपतिसूरि शिष्य जिनचंद्रसूरिए रचेल छे (पाटण भं.) अने साधुसोमे प्राकृत चंद्रप्रभचरितपर वृत्ति १३१६ श्लोकप्रमाण रची एम जैन ग्रंथावली पृ. २३९मां जणाव्युं छे. ____ आ चरितनुं गूजराती भाषांतर भावनगरनी श्रीजैन आत्मानंद सभा तरफथी (श्री जैन आत्मानंद ग्रंथमाला नं. ६१ अने शेठ दीपचंद गांडाभाई ग्रंथमाला नं.१ तरीके) हमणां ज बहार पड्यु छे.
लोहार चाल, मुंबई, ता. २९-३-३०.
मोहनलाल दलीचंद देशाई B.A., LL.B., एडवोकेट
[आलेखमां वापरेल ढूंकाक्षरीनी समजः जि० जिनविजय संपादित प्राचीनलेखसंग्रह; ना०=पूरनचंद नाहरकृत जैनलेखसंग्रह; बु०=बुद्धिसागरसूरिना जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, वि०=विजयधर्मसूरिनो प्राचीनलेखसंग्रह; आंकडामा पहेलो आंकडो पुस्तकनो भाग अने बीजो आंकडो लेखनो नंबर सूचवे छे.]
चन्द्रप्रभचरित्रम्, पूर्वप्रकाशननी प्रस्तावना ।