SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रंथकारनी सामे श्रीहेमचंद्रसूरिनुं त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरितमां आपेलुं चंद्रप्रभचरित हतुं एम स्पष्ट जणाय छे. तेना प्रमाणमां जोइशुं तो ज्यारे पूर्वभवना पद्म राजा दीक्षा ले छे ते माटे नीचे- हेमाचार्य जणावे छे: भवस्य छेदनायाऽथ गिरेरिव पविं हरिः । अग्रहीत्स परिव्रज्यां युगन्धरगुरोः पुनः (रः) ॥९॥ विविधाऽभिग्रहो दान्तो विहितेन्द्रियनिग्रहः । स्वविग्रहेऽप्यनाकाङ्क्षश्चिरं सोऽपालयद् व्रतम् ॥१०॥ आनी साथे सरखावो ग्रंथकार जे श्लोको मूके छे ते:श्रुत्वेति देशनां पद्मः संसारोत्तारणक्षमाम् । अग्रहीत् स परिव्रज्यां युगन्धरगुरोः पुरः ॥१॥ विहिताऽभिग्रहो दान्तो विहितेन्द्रियनिग्रहः । स्वविग्रहेऽप्यनाकाङ्क्षश्चिरं सोऽपालयद् व्रतम् ॥२॥ पान १४७ अन्य चरितकारो श्री हेमचंद्राचार्यना समयमां ज, उपकेश गच्छना देवगुप्तसूरि-कक्क-सिद्ध-देवगुप्तसूरिना शिष्य यशोदेवसूरिए आशावल्लीपुरिमां आरंभी अणहिलवाड पाटणमां सं. ११७८मां चंद्रप्रभचरित्र प्राकृतमां रची पूर्ण कर्यु हतुं. (जेसलमेर भंडारसूचि ३३) अने कुमारपाल राज्ये हरिभद्रसूरि थया के जेओ बृहद्गच्छना जिनचंद्रसूरिना बे शिष्यो नामे आम्रदेवसूरि अने श्रीचंद्रसूरि पैकी श्रीचंद्रसूरिना शिष्य हता, तेओ गूर्जर राजधानी पाटणमां घणो काल रह्या छे अने राजमंत्रीओ साथे विशेष परिचय तेमनो हतो, ए पण स्पष्ट छे. सिद्धराज अने कुमारपाल ए बने राजवीना महामात्य मंत्री पृथ्वीपालनी प्रार्थनाथी आ आचार्ये चोवीसे जैनतीर्थंकरोनां चरित्रो प्राकृत अपभ्रंशादि भाषामां रच्यां हतां - तेमांना चंद्रप्रभचरित्र, मल्लिनाथचरित्र अने नेमिनाथ चरित्र ए त्रण हजु सुधी पाटणमां उपलब्ध थयां छे, के जेटलानुं श्लोकप्रमाण २४००० छे. बृहत् टिप्पनिका प्रमाणे चंद्रप्रभ चरित्रनुं प्रमाण ८०३२ श्लोक छे. नेमिनाथ चरितनी रचना चन्द्रप्रभचरित्रम्, पूर्वप्रकाशननी प्रस्तावना ।
SR No.022638
Book TitleChandraprabh Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHitvardhanvijay
PublisherKusum Amrut Trust
Publication Year1930
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy