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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। मुक्त्वापवादमार्ग हि, श्रीपूज्यो यदि पालयेत् । इत्थं नवसमाचारी-रित्वा तस्मै निवेद्यताम् ॥१२॥ ततस्तो शीघ्रमेतासां, दलं लात्वा समागतो। पूज्याऽभ्यर्णेऽखिलोदन्त-स्ताभ्यां सम्यग् निवेदितः पठित्वा ताश्च पूज्योऽपि, मत्वैता. हितकारिकाः । प्रमाणं मे किलैताश्च, स चकार कराक्षरम् ॥ १२७ ॥ ९-स्वपरकी सम्यक्त्वकी शुद्धि व वृद्धि हो वैसा उपदेश देना, शारीपाशा, शतरंज आदि खेलना नहीं, केश रंगना नहीं, रातमें बाहर नहीं घूमना, जूते पहिनना नहीं, हमेशा यतियों को ५०० सौ गाथाकी आवृति करना, अपवाद (कारण) मार्ग को छोड़कर यदि तुम्हारे श्रीपूज्य इस प्रकार ९ नव समाचारी पालें, पला तो उन्हें जाकर निवेदन करो ।। १२३ ॥ १२४ ।। १२५ ॥ उसके बाद वे दोनों यति शीघ्र ही इन समाचारियोंका पत्र लेकर श्रीपूज्यजीके पास आए और उनसे अच्छी तरहसे कुल वृत्तान्त निवेदन किया । वे श्रीपूज्यजी उनको वाँचकर उन्हें हितकारी मानकर मुझे ये सब समाचारियाँ मंजूर हैं, ऐसा कहकर उस पत्र पर संवत् १९२४ मिति माह सुदि ७ लिखकर खुदकी सही करदी और पार्श्ववर्ती यतिमुख्य पं० मोतीविजयादि ९ यतियोंके हस्ताक्षर भी करवा दिये ।। १२६ ॥ १२७ ॥
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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