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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। तैलादिमर्दनं नैव, सद्व्यवहारमाचरेत् । रक्षेद्धिंसकभृत्यादि, न चाधिकतरं तथा ॥१२१ ॥ क्षमाश्रमणदानानि, श्रीसंघात्कलहेन च । हठाद् द्रव्यं न गृह्णीयात्, श्रीपूज्येन सुधीमता ॥१२२॥ ५-भांग, गाँजा, तमाखू आदि नहीं पीना, रातमें भोजन नहीं करना, त्याग-हीन, कांदा, लशुनादि खानेवाले, और व्यभिचार-रक्त ऐसे यतिको भी नहीं रखना। ६-सचित्त वनस्पतिको नहीं काटना, दांतोंकी सफाई नहीं करना, कुआँ तलाव आदि के कच्चे जलको नहीं छूना, सदैव उष्ण जल पीना, कारण विना तैलादि मर्दन नहीं करना, और सबको प्रिय लगे ऐसे उत्तम व्यवहारमें चलना। ७-अधिक नौकर नहीं रखना, और हिंसकको तो कभी नहीं रखना। ८-अकलमन्द श्रीपूज्यजीको श्रीसंघके पास झगड़े से व हठ से खमासमण, और द्रव्य नहीं लेना ॥ ११८ ।। ॥ ११९ ॥ १२० ॥ १२१ ॥ १२२ ॥ मार्ग प्ररूपयेच्छुद्धं, सम्यक्त्वं येन सम्भवेत् । नो शारीशतरञ्जादि-देवनं केशरञ्जनम् ॥ १२३ ॥ रात्रौ बहिर्न गन्तव्यं, सदा जह्यादुपानही । गाथापञ्चशती नित्य-मावाखिलसाधुभिः ॥१२४।।
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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