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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी । १४२ सहस्रशः सुसंघाना,-मागच्छन्नतिशीघ्रतः।। मञ्जुलाडम्बरैरेतां, भ्रामयन्नखिले पुरे ॥५७६ ।। शोक पूर्वक श्रीसंघने सुगंधदार चन्दन, वरास, कपूर, आदि उत्तम २ वस्तुओंसे लेपन किया हुआ साधुके वेशयुक्त सुवासित जलसे अभिषेक कराये गये गुरुश्रीके शरीरको उस वैकुंठीमें पद्मासनसे स्थापन किया ॥ ५७२ ॥ उपरोक्तगुरुनिर्वाणोत्सवमें सरदारपुरकी छावणीसे एवं धारानरेशकी आज्ञासे धारानगरीसे सहर्ष शीघ्र वेण्डबाजे मंगवाए गये ॥ ५७३ ॥ तैसे ही उस उत्सवमें कूकसी, बाग, आलीराजपुर, बोरी, कड़ोद, झाबुवा, पारा, टांडा, रीङ्गनोद, झकनावदा, राजोद, राणापुर, रंभापुर, धामणदा, दशाई, वड़नगर, लेड़गाम आदि गाव नगरोंसे गुरुनिर्वाण सुनते ही अति शीघ्रतया एकदम हजारों श्रीसंघ आये और उस वैकुण्ठीको बड़े ही सुन्दर समारोहके साथ सारे नगरमें घुमाते हुए ॥५७४-५७६॥ जयारावैर्गुरोर्नाम्नः, श्रीसंघास्यसमुत्थितः । तदाऽऽस्तां गीतवाद्यैश्च, रोदसी मुखरायिते ॥५७७॥ इत्थंकारमसौ संघो, राजदुर्गाद् द्विमीलके । तीर्थे मोहनखेडाख्ये,सुभूमौ तामतिष्ठपत् ॥ ५७८ ॥ समयेऽस्मिन् गुरोभत्तयां, संघो राजगढस्य च । श्रीवडनगरस्यापि, लेभे लाभं विशेषतः ॥ ५७९ ॥
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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