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________________ श्री राजेन्द्रगुणमञ्जरी । १२९ प्रथम भागमें छप चुकी है । १६- और प्राकृतगाथाओं के संग्रह से युक्त-सर्वसंग्रह प्रकीर्णक है ।। ४९६-४९७ ॥ ४१ - सङ्गीत - भाषान्तर - ग्रन्थनामानि - बोधार्थं बालबुद्धीनां, मुनिपतेश्चतुष्पदी | तथाऽर्धे कुमारस्य, घष्स्यापि चतुष्पदी ॥ ४९८ ॥ सिंद्धचक्रस्य पूजाsस्ति, पैञ्चकल्याणकस्य च । चतुर्विंशजिनानां च सचैत्यवन्दनान्यपि ॥ ४९९ ॥ सुस्तुतीः स्तवनान्येवं, चक्रेऽसौ हितकांक्षया । भाषाग्रन्थान् क्रमादेतान् प्राणिनां चाऽनुकम्पया ५०० गैच्छाचारप्रकीर्णस्य, कृता भाषा सुविस्तरा । तथैवं कल्पसूत्रस्य, सँप्तमाङ्गस्य सुन्दरा ॥ ५०१ ॥ ? सङ्गीत और भाषान्तर ग्रन्थ बालबुद्धि जीवोंके ज्ञान होनेके लिये रचे । १७- मुनिपति - चौपाई, १८ - अघटकुमार - चौपाई, १९ - प्रष्ट्र - चौपाई ॥ ४९८ ॥ २० - सिद्धचक्रपूजा, २१- पञ्चकल्याणक पूजा, २२ - चौवीस जिनोंके चैत्यवन्दन ।। ४९९ ।। २३ - चौवीस जिनस्तुति, २४ - चौवीस जिनस्तवन और इसी प्रकार गुरुश्रीने प्राणियोंकी हितवाँछासे व दयादृष्टिसे क्रमसे ये भाषान्तर ग्रन्थ रचे ।। ५०० ।। २५गच्छाचारप्रकीर्णककी सविस्तर भाषा, इसी मुजब २६ - कल्प ९
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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