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________________ ११४ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी।। रतलाममें, १९३६ भीनमालमें, १९३७ शिवगंजमें, १९३८ आलीराजपुरमें, १९३९ कूकसीमें, १९४० राजगढ़में, १९४१ दश हजार जैनकी वसतिवाले शहर. अहमदावादमें, १९४२ धोराजीमें, १९४३ धानेरामें, १९४४ थरादमें, १९४५ वीरमगाममें, १९४६ सियाणामें, १९४७ बालोतराके गुड़ामें, १९४८ सबसे सुन्दर-आहोरमें ॥ ४२९-४३३ ।। निम्बाहेडापुरे चारो, खाचरोदे सदोत्तमे । ख्याते राजगढे रम्ये, पट्टीये जावरापुरि ॥४३४ ॥ रत्नपुर्यां तथाऽऽहोरे, शिवगंजे सियाणके । आहोरे पुरजालोरे, सूरते कूकसीपुरे ॥४३५ ।। खाचरोदे पुरश्रेष्टे, श्रीवडनगरेऽन्तिमम् । एता जाताश्चतुर्मास्यो, गुरुराजक्रियोद्धृतौ ॥ ४३६ ॥ चतुर्मासीष्वनेनाऽऽसु, सद्धर्माभिमुखीकृताः । जीवा धर्मोपदेशैश्च, भवजन्मादिभीरवः ॥ ४३७ ॥ १९४९ निम्बाहेड़ामें १९५० खाचरोदमें, १९५१-५२ प्रख्यात रमणीय राजगढ़में, १९५३ सुन्दर शहर जावरामें, १९५४ रत्नपुरी-रतलाममें, १९५५ आहोरमें, १९५६ शिवगंजमें, १९५७ सियाणामें, १९५८ आहोरमें, १९५९ गढ़ जालोरमें, १९६० सूरतमें, १९६१ कूकसीमें, १९६२ खाचरोदमें और १९६३ अन्तिम चौमासा वड़नगरमें, इतने चौमासे गुरुराजके क्रियोद्धार करने बाद हुए । आपश्रीने धर्मोपदेश
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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