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________________ श्री राजेन्द्रगुणमञ्जरी । ९७ फिर विचरते हुए शहर ' जावरा ' में आकर लोढा लक्ष्मीचन्दजीके जिनमंदिरमें श्रीशीतलनाथजीकी प्रतिष्ठा गुरुने निर्मल मनसे की ।। ३६५ ।। ' झाबुवा ' राज्य के मध्यगत गाँव 'रंगपुरा में श्री ऋषभदेवजी की प्रतिष्ठा की । एवं दशाई, रंगनोद, सरसी, खाचरोद, मड़ावदा, कड़ोद, टांडा, झाबुवा, रंभापुर, काणोदर आदि अनेक पुरग्रामों में सहर्ष महानन्द पूर्वक महोत्सवों के साथ गुरुमहाराजने अञ्जनशलाका प्रतिष्ठाएँ कराईं ।। ३६६- ३६८ ॥ ३३ - चीरोलानिवासिनां दुःखकथोक्तिः श्रीखाचरोदसंघस्य, तस्थावत्याग्रहेण सः । भो ! अत्रास्यां चतुर्मास्यां, चीरोलाग्रामवासिनः । ३६९ | व्याख्याने प्रार्थनां चक्रुः, श्राद्धा जातिबहिष्कृताः । पतिताः स्म महाराज !, महादुःखैकसागरे ॥ ३७० ॥ व्यतीयुर्बहुवर्षाणि दीनानस्मांस्त्वमुद्धर । तदैव गुरुणा पृष्टास्तेऽप्यवोचन्निजां कथाम् ||३७१९ ॥ पुरा कश्चिद्धनी श्रेष्ठी, रत्नपुर्यां निजाङ्गजाम् । दातुं करोति वाग्दानं, तद्भार्यापि गृहे तथा ॥ ३७२ ॥
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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