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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। राजगढ़ निवासी वृद्ध पौरवाल संघवी दल्लाजी सुतलूणाजीने गुरुमहाराजके सदुपदेशसे अपने धनको सफल करनेके लिये एवं सबको सिद्धाचल तीर्थकी दिशि जुहारनेकी इच्छासे राजगढ़से एक कोशके अन्दर संवत् १९६० मगसिर सुदि सप्तमी बुधवारके दिन प्रसिद्ध 'मोहनखड़ा नामक तीर्थ स्थापन किया ॥ २०१-२०३ ॥ वुधवारे सुवेलायां, सूरीशेन मुदाऽमुना। आदिनाथादिबिम्बानां, प्रतिष्ठाऽकारि साञ्जमा १४ पौषशुक्लस्य सप्तम्यां, राजदुर्गाद् द्विमीलके ।। चैत्रोर्जपूर्णिमायां च, यात्रिकास्तु सहस्रशः ॥ो समायान्ति सुतीर्थेऽस्मिन् , गुरुदेवदिदृक्षया । मन्ये युगप्रधानं त-मन्वर्थ पश्चमारके ॥२०६॥ धोराजीपत्तने प्रीत्या, श्रीधानेरापुरे वरे। तत्रत्याः स्थविराः श्राद्धा-स्तमद्यापि स्मरन्ति वै २०७ गुर्जरे वीरमग्रामे, सियाणाख्ये मरुस्थले । अत्राभिधानराजेन्द्र-कोषकार्यमचीचलत् ॥२०८॥ बालोतरागुडाग्रामे-ऽत्यन्तानन्दैरलंकृता । यत्र यत्र गुरुयातो, धर्मवृद्धिरभूद् बहुः ॥ २०९ ।। वहाँ पर श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरिजी महाराजने सुवक्तमें साञ्जनशलाका श्रीआदिनाथ आदि अनेक जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा कराई । उस तीर्थ में विशेष रूपसे चैत्र कार्तिक पूर्णिमा
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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