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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। और पौष सुदि सप्तमी के रोज देवगुरुके दर्शनार्थ हजारों यात्री आते हैं । इस पंचम कालमें यथार्थ सूरिगुण युक्त उन गुरुमहाराजको मैं युगप्रधानरूप मानता हूँ। फिर संवत् १९४२ का चौमासा धोराजीमें, १९४३ धानेरामें किया । वहाँ के बड़े बड़े श्रावक आज दिन पर्यन्त गुरुको याद करते हैं। १९४५ वीरमग्राम (गुजरात) १९४६ सियाणा (मारवाड़) में चौमासा हुआ। इसमें 'अभिधानराजेन्द्र' कोषका काम शुरू हुआ, और १९४७ बालोतराके गुड़ामें अत्यानंद पूर्वक चातुर्मास पूर्ण हुआ। एवं जहाँ जहाँ गुरुमहाराज पधारे वहाँ वहाँ धर्मकी अतीव वृद्धि हुई ॥ २०४-२०९ ॥ २१ सिद्धाचलगिरनारादितीर्थवन्दितुं संघनिर्गमः व्याख्याने च थिरापद्रे, पञ्चमाङ्गमवाचयत् । विध्युत्सवैश्च संघोऽत्रा-ऽश्रौषीत्प्रश्नोत्तरार्चनैः।।२१०॥ आसन् षोडशसाध्व्यश्चै-कादशमुनिपुङ्गवाः । उद्यापनमभूत्सिद्ध-चक्रस्य विंशतेस्तथा ॥२११॥ शरीरादेरनित्यत्वं, लक्ष्म्यास्त्वस्ति सुचापलम् । सोऽन्ते चोपदिशेत्संघ, शास्त्रैर्यात्राफलं महत्।।२१२॥ आरंभाणां निवृत्तिविणसफलतासंघवात्सल्यमुच्चैनैर्मल्यं दर्शनस्य प्रणयिजनहितं जीर्णचैत्यादिकृत्यं । तीर्थोन्नत्यं जिनेन्द्रोदितवचनकृतिस्तीर्थकृत्कर्मबन्धः, सिद्धरासन्नभावःसुरनरपदवी तीर्थयात्राफलानि२१३॥
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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