________________
(८५) भावार्थ-श्री जिनमगवंतनी यथार्थ रीते स्तुनि करवामां चंद्रनी शक्ति पण कुंठित (अशक्त) थई जाय छे. दिव्य शक्तिने धारण करनार होय-तेनाथी पण शुं समुद्र मापी शकाय? ३
ओंकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायति योगिनः। कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नमः॥१॥
भावार्थ-बिंदुयुक्त ओंकार-के जेनुं योगी जनो निरंतर ध्यान करे छे, जे इच्छाओने पूर्ण करे छे एटलुज नहि, पण जे मोक्षने आपे छे-एवा ओंकारने वारंवार नमस्कार छे. १
ओजस्विनां यथा कार्यं दुःशक्यं नास्ति किंचन। तथैव प्रियवक्तृणां कार्य हि सुकरं मतम् ॥२॥
भावार्थ-जेम ओजस्वी पुरुषोने कंई पण कार्य दुःशक्य नथी, तेम प्रिय बोलनारा जनोने पण बघु कार्य सुगम होय छे. २ .
ओष्ठममृतवन्मत्वा स्त्रीणां ये कामप्रेरिताः। . चुंबनाय प्रवर्तते धिक तेषां जीवनं सखे ॥३॥