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(४३) पुष्करपत्रतोयतरलं विद्वद्भिराशंसितं नारी नाम विषांकुरैरिव लता दोपैः समं वर्धिताः ।। १२३॥
भावार्थ-दर्पणनी अंदर प्रतिबिंबित थयेल स्त्री-. ओनुं वदन अने मुख-ए खरखर अग्राह्य छे. वली पर्वतमा आवेल सुक्ष्म मार्गनी जेम विषम एवो स्त्रीओनो भाव तो जाणी शकातोज नथी. तेमज तेमनुं चित्त तो जाणे कमळना पत्रपर जळबिंदु होय, तेवू चपळ कहेवामां आवेल छे. अहो ! विषलतानी जेम स्त्रीओ दोषोनी साथे साथेज वृद्धि पामी होय तेम लागे छे.१२३ __ अभ्युत्थानमुपागते गृहपतौ तद्भाषणे नम्रता तत्पादार्पितदृष्टिरासनविधिस्तस्योपचर्या स्वयम्। सुप्ते तत्र शयीत तत्पथमतो जह्याच्च शय्यामिति प्राच्यैः पुत्रि निवेदितः कुलवधूसिद्धांतधर्मागमः॥१२४॥
भावार्थ--पोतानो पति घर आवे त्यारे अभ्युत्थान करवू, बोलवामां तेनी सामे नम्रता दर्शाववी तेना चर-.