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सबके आगे होयके कबुन कीजे वात ॥
सुधरे तो जरा जश हुवे बगडे गाली खात ॥ १९ ॥ सोम शियालने काचबो परघर पोला थाय ॥ सामो आवे आपघर सौ शंकेली जाय ॥ २० ॥ सदा न लक्ष्मी स्थिर रहे सदा न सुखनो संग || सदा न कायम सवलता सदा न चडतो रंग ॥ २१ ॥ सज्जन सज्जन जोइने मन संतोषी थाय ॥ जोइ चकोरा चंदने जेम मनमां मकलाय ॥ २२ ॥ समज्या विण जे नर धरे हृदय विशें अति रोष ॥ पाछलथी पस्ताय छे देखे ज्यां निजदोष ॥ २३ ॥ समय समयनी छायडी सुख दुःखनो नही पार ॥ पुन्य पाप दोय जोडला एमां सो अहंकार ॥ २४ ॥ साधु पूछे सतीने माली पूछे कूआ || ब्राह्मण पूछे कुंभारने आगाममां केटला मूआ ॥ २५ ॥ सत्य साचवे तेहने दुर्जन शुं करनार ॥ श्वान करडी नवि शके जे गज शिर असवार ।। २६ ।। संपद गई पाछी मले गया वले छे वहाण ॥ गत अवसर आवे नहि गया न आवे प्राण ॥ २७ ॥ सज्जन शहुने प्रिय पण दुर्जनने मनकाल ॥ जगत चक्षु रवि उदय छे घूक गणे विकराल ॥ २८ ॥