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सहुथी भुंडी चाकरी तेथी मुंडो भार ॥ तेहथी भुंडं जाच सोमने कहेवुं दातार ॥ ९ ॥ शज्जन शब जग सरस हे जब लग पड्यो न काम ॥ हेम हुतासन परखीये पीतल निकशे श्याम ॥ १० ॥ शठनी संगतथी सहे भला जनो दुःखमार ॥ माकडना मेलापथी खाय खाटलो मार ॥ ११ ॥ सज्जन मिलापी बहोत हे ताली मित्र अनेक ॥ जेने दीठे दिलठरे सो लाखनमे ओक ॥ १२ ॥ सिंहां संगम पुरुष वचन केल फले एकवार ॥ त्रीया तोरण हमीर हठ चडे न बीजी वार ॥ १३ ॥ स्वभाव जो सुधर्यो नहि भण्यो नही सुधरेल || छे चोरो यूरोपमां बहु भणतर भणेल ॥ १४ ॥ साहेब जरुखे बेठके सबका मुजरा लेत ॥ जेशी जनुकी चाकरी तेसी तिनुकु देत ॥ साधुकी संगत भली निस्फल कदी न होय ॥ चंदन पासे रुखडा ते पण चंदन जोय ॥ १६ ॥ सज्जन एसा कीजीए जेशा टंकण खार ॥ आप जले पर रीजवे भांगा सांधणहार ॥ १७ ॥ सज्जन एसा कीजिए जेशा ज्युवारी खेत ।। मूलसहित शिर कापतां तोए न मेले मीठ ॥ १८ ॥
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