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________________ (४८३) बगर कारणे आमतेम खाली धका खाय ॥ उद्यम कांई करे नही ए मूरखनो राय ॥१७॥ समजु शंके पापथी अणसमजु हरखंत ॥ व लूखा व चीकणा ईणविध कर्म क्र्धत ॥१॥ सज्जन न तजे सज्जनता कीजें बहुत बिगार ॥ ज्युं चंदन छेदे त्युंहिं सुरभि करत कुठार ॥२॥ समज्या समज्या एकमत समजु टाले दोष ॥ समज समजने जीवडा गया अनंता मोक्ष ॥३॥ सोई नाके सिंधर पोवे ते किम आगो पेसे ॥ स्यादवाद विण धर्म प्ररुपे ते शालो शाल न बेसे ॥४॥ सत्य साचवे तेहने खल जन शुं करनार ॥ श्वान करडी नवि शके जे गज शिर असवार ॥ ५॥ सत्य संताडयुं नवि रहे खरे खरो ए खेल ॥ जिम आवे उपर तरी जल तरियेथी तेल ॥६॥ सात वेथना सर्व जन कीमत अकल तुल्य ॥ सरखा कागल हुंडीना पण आंक प्रमाणे मूल्य ॥७॥ सजन सम विचारियें अपना कुलकी रीत ॥ बराबरीशे कीजीयें विवाह वैर और प्रीत ॥८॥
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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