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कृतघ्नने जे आपीयुं खाय त्यां लगी प्रीत॥ खातांसुधि भसे नही श्वान तणी ए रीत ॥ ३७॥ कुल कुपुत्र नथी कामनो तेहथी शोभा जाय । आंचल कंठे बकरीने पण दूध नही दोवाय ॥ ३८॥ क्षमा आपतां वांकनी रस मनमा रेलाय ॥ शीक्षा करता थाय रस पण तेहवो नवि थायः ॥ ३९ ॥ खल सज्जन गति आठ नव अंक समान विचार ॥ द्विगुन ब्रिगुन फुनि पंचगुन घटत रहत इक सार ॥१॥ खबर नहि पा पल तणी करे कालकी बात ॥' जीवत पर यम फिरत है जलबिलू पर वात ॥२॥ खेत्र बगडयो तणखले सभा बोलतां कूड ॥ भक्ति बगडी लालचे ज्यु. केशर पडी धूळ ॥३॥.' गुण तो एक जणाय नही अवमुण गण्या न जाय ॥ मिथ्या मान धरे घणो ए मूरखनो राय ॥१॥ गुण जे कर्या गमारने धरी धूळमां धूळ ॥ बावलीयो बलीयो बनी सदाय आपे झूल ॥२॥ गणे न कोई गरीबने धनपतिने सहु धाय ॥ छींक खाय जो धनपति तोय खमां कहेवाय ॥३॥