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गुणी सुपुत्र एकथी 'आखं कुल वखणाच ॥ एकज चंदन वृक्षथी जिम वन वासित थाय ॥ ४ ॥ गुरु लोमी शिष्य लालचु बिहुँहिं खेले दाच ॥ बूंडे दोनुं बापडा बेठ पत्थरकी नाव ॥ ५॥ गुणी जन गुप्त रहे नही विण यतने पंकाय ॥ दिनकर वादल दलविशें दाट्यो पण देखाय ॥ ६ ॥ गुण कीधे जे गुण करे ते व्यवहारी नेह ॥ अवगुण कीधे गुण करे सज्जन कहीयें तेह ॥ ७ ॥ गला काट कलमा पढे मुखरों कहे हलाल ॥ साहेब के दरबारमे होशे कोन हवाल ॥ ८ ॥
घेलीमाथे बेडलो वानर कोठें हार ॥
जुगारी पास पैसो रह्यो जतां न लागे वार ॥ १ ॥
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चीता बंडी अभागणी मांस बींदुको खाय ॥ रती रती भर संचरे तीला मर मर जाय ॥ १ ॥ चार अंग दुर्लभ अति आदि नर अवतार ॥ श्रुत श्रवण श्रद्धा शुद्धि चोथो संयम सार ॥ २ ॥ चैतन्य सरजे सुखदुःखो भोक्ता तेहिज होय ॥ पर ऊपर दोषज दीये ते सही मूरख जोय ॥ ३ ॥