SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 472
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४६१ ) गुणी सुपुत्र एकथी 'आखं कुल वखणाच ॥ एकज चंदन वृक्षथी जिम वन वासित थाय ॥ ४ ॥ गुरु लोमी शिष्य लालचु बिहुँहिं खेले दाच ॥ बूंडे दोनुं बापडा बेठ पत्थरकी नाव ॥ ५॥ गुणी जन गुप्त रहे नही विण यतने पंकाय ॥ दिनकर वादल दलविशें दाट्यो पण देखाय ॥ ६ ॥ गुण कीधे जे गुण करे ते व्यवहारी नेह ॥ अवगुण कीधे गुण करे सज्जन कहीयें तेह ॥ ७ ॥ गला काट कलमा पढे मुखरों कहे हलाल ॥ साहेब के दरबारमे होशे कोन हवाल ॥ ८ ॥ घेलीमाथे बेडलो वानर कोठें हार ॥ जुगारी पास पैसो रह्यो जतां न लागे वार ॥ १ ॥ . चीता बंडी अभागणी मांस बींदुको खाय ॥ रती रती भर संचरे तीला मर मर जाय ॥ १ ॥ चार अंग दुर्लभ अति आदि नर अवतार ॥ श्रुत श्रवण श्रद्धा शुद्धि चोथो संयम सार ॥ २ ॥ चैतन्य सरजे सुखदुःखो भोक्ता तेहिज होय ॥ पर ऊपर दोषज दीये ते सही मूरख जोय ॥ ३ ॥
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy